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________________ - .............................. - ....... ........ - पदरी छन्द सरस उन्नत क्षेत्र प्रधान है, अति सु उज्ज्वल तीर्थ-महान है। करहि भक्तिमु जे गनगायक, बरहि शिव सुरनर सुस पायक। (मडिल्ल छन्द)-सुर हरि नरपति प्रादि सु जिन वदन करें। भवसागर ते तिरे, नही भवदघि पर ।। सुफल होय जो जन्म सो जे दर्शन करें। जन्म जन्म के पाप सकल छिन मै टरै ।।६।। पद्धरी छन्द श्री तीर्थबर जिनवर वीस, अरु मनि प्रमख्य सब गुनन ईग। पहंचे जहते वोवल सुधाम, तिन सवको अव मेरा प्रणाम ॥७॥ (गीता छन्द)- सम्मेदगढ है तीर्थ भारी सवन को उज्ज्वल करे। चिरकाल के जे कर्म लागे दरश तैछिन मे टरे॥ हैं परम पावन पुण्य दायक प्रतुल महिमा जानिये। है अनूप मरूप गिरिवर तासु पूजा ठानिये ॥८॥ दोहा-श्री सम्मेद शिखर महा, पूजो मन वच काय । हरत चतुर-गति दुःख को, मनवाछित फल दाय ॥ ॐ ह्री श्री सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र ! अभावतर अवतर सवौपद आह्वाननम् । अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ स्थापनम् । अत्र मम सन्निहितो भव भव वपट् सन्निधिकरण।। अथाष्टक क्षोरोदधि सम नीर सु उज्ज्वल लीजिए। कनक कलश मे भरके धारा दीजिए। पूजी शिखर सम्मेद सु मन वच काय जू । नरकादिक दुख टर प्रचल पद पाय जू ।। ॐह्री श्री सम्मेदशिखरसिद्धक्षेत्रेभ्यो जन्मजरा मृत्यु विनाशनाय जल । पयसों घसि मलियागिरि चंदन ल्याइये ।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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