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________________ 1 १२३ पुनि गीत नृत्य बाजे बजाय, गुरण गाय ध्याय सुरपति सिधाय । सो नाथ प्रबं जगमे प्रत्यक्ष, नित होत दीपमाला सुलक्ष । हे जिन तुम गुरण महिमा अपार, वसु सम्यग्ज्ञानादिक सुसार ॥ तुम ज्ञानमाहि तिहुँलोक दर्व, प्रतिबिम्बित हैं चर चर सर्व । लहि तम अनुभव परम ऋद्धि, भये वीतराग जगमें प्रसिद्ध || ह्व बालयति तुम सबन एम, श्रचिरज शिवकांता वरी फेम । तुम परम शांतिसुद्रा सुधार किय अष्टकर्म रिपु को प्रहार ॥ हम करत बिनती बार बार, कर जोर स्व मस्तक धार धार तुम भये भवोदधि पार पार, मोको सुवेग ही तार तार ॥ अरदास दास ये पूर पूर, वसु कर्म शैल चकचूर चूर । दुख सहन करन अब शक्ति नाहि, गहि चरण शरण कीजे निचाह चौ० - पांचो बालयति तीर्थेश, तिनकी यह जयमाल विशेष । नवच काय त्रियोग सम्हार, जे गावत पावत भवपार ॥ ॐ ह्री पच बालयति तीर्थङ्कर जिनेन्द्राय नम पूर्णाम् । दोहा - ब्रह्मचर्य सो नेह घरि, रचियो पूजन ठाठ । पांचों बाल यतीन को, कीजे नित प्रति पाठ ||२६|| || इत्याशीर्वाद || पंच परमेष्ठी की पूजा दोहा - मंगल मय मंगल करन, पंच परम पदसार । अशरण को येही शरण, उत्तम लोक मकार ॥१॥ चव श्ररिष्ट को नष्ट कर, प्रनन्त चतुष्टय पाय । परमइष्ट अरिहन्त पद, बन्दों शीष नवाय || २ ||
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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