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________________ [ १२१ जयमाला दोहा-बाल ब्रह्मचारी भये, पांचो श्री जिनराज । तिनकी अव जयमालिका, कहू स्वपर हितकाज ।। जय जय जय जय श्रीवासुपूज्य, तुम सम जगमे नहीं और दूज । तुम महा लक्ष सुर लोक छार, जब गर्भ मात माही पधार ।। पोडश स्वपने देखे सुमात, बल अवधि जान तुम जन्म तात । अति हर्पधार दम्पति सुजान, बहु दान दियो जाचक जनान ।। छप्पन कुमारिका कियो प्रान, तुम मात सेव बहु भक्ति गान । छ. मास प्रगाऊ गर्भ पाय. धनिपति सुधरन नगरी रचाय ।। तुम मात महल प्रागन मंझार. तिहुफाल रतन धारा अपार । वरषाये षट् नवमास सार, धनि जिन पुरुषन नयनन निहार ।। जय मल्लिनाथ देवन सुदेव, शतइन्द्र करत तुम चरन सेव । तुम जन्मत हो त्रयज्ञान धार, प्रानन्द भयो तिहुँ जग अपार ।। तबही ले चहु विधि देव सङ्ग, सौधर्म इन्द्र पायो उमङ्ग । सजि गज ले तुम हरि गोद प्राप, वन पांडक शिल ऊपर सुथाप। सोरोदधि ते बहु देव जाय, भरि जल घट हाथो हाथ लाय ।। करि न्हवन वस्त्र भूषण सजाय, दे ताल नृत्य ताडव कराय ।। पुनि हर्ष धार हिरदै अपार, सब निर्जर रद जय जय उचार । तिस अवसर प्रानन्द हेजिनश, हम कहिवे समरथ नाहि लेश ।। जय जादोपति धी नेमनाथ, हम नमत सदा जुग जोर हाथ । तुम व्याह समय पशुवन पुकार, सुन तुरत छुडाये दयाघार ।। कर कंकरण अरु सिर मौर बन्द, सो तोड भये छिनमे स्वछन्द ।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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