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________________ ११४ ] जय जिनने प्रभुको शरण लीन, तिनको सहाय प्रभुजी सोकीन जय नाग नागनी भये अधीन, प्रभुचरणन लाग रहे प्रदीन । तजिके तो देह स्वर्गे तुजाय, घरगेन्द्र पद्मावती नये आय ॥४॥ जय चोर सुजन प्रधम जान, चोरी तज प्रभुको घरो ध्यान जय मृत्यु भये स्वर्ग सु जाय, ऋद्धी अनेक उनने तो पाय |५| जय मतिसागर इक सेठ जान, जिन रविव्रत पूजा करी ठान । तिनके तुत थे परदेश माहि जिन अशुभ कर्म काटे नु ताहि ॥ जे रविव्रत पूजन करो सेठ, ता फलकर सबने भई रेट | जिनरने प्रभुका शररण लीन, तिन ऋद्धिसिद्धि पाई नवीन |७| जे रविव्रत पूजा करहि जेय, ते लौस्य अनन्तानन्त लेय । वरगेन्द्र पद्मावती हुए सहाय, प्रभुभक्त जान तत्काल आय 15 | पूजा विधान इहि दिघ रचाय, मन वचन काय तीनों लगाय । जे भक्तिभाव जयमाल गाय, सो हो सुख संपति अतुन पाय || वाजत मृदंग बीनादि हार गावत नाचत नाना प्रकार । तन नननननननन ताल देत, सन तननननन सुर भर तुलेत ॥१० ता येई थेई थेई पग घरत जाय, छमछमछमछम घुंघरू बजाय जे कर हिनिरत इहि भाँत भाँत, ते लहहि सौख्य शिवपुर सुजात दोहा - रविद्रन पूजा पार्श्व की, करे भविक जन जोय । सुख सम्पति इह भव लहे, तुरत सुरंग पद होय ॥ ॐ ह्रीं श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय पूर्णार्थं नि० । डिल – रविव्रत पार्श्व जिनेन्द्र पूज - भव भव के प्रताप सकल भवि मन घरें । छिन में टरं ॥
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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