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________________ [ १०६ ॐ ह्री पुष्कर द्वीपकी पूर्वदिशि मन्दरमेरु की उत्तर दिशि ऐरावतक्षेत्र सम्बन्धी तीन चौबीसी के बहत्तर जिनेन्द्र भ्य. नम अध्यं नि। पद्धरि छन्द पश्चिम पुष्करगिरि विद्युतमाल, ताके दक्षिण भरतसु विशाल । तामे चौबीसी हैं जु तीन, वसु द्रव्य लेय पूजू प्रवीन । ____ॐही पुष्कराद्ध द्वीपकी पश्चिम दिशि विद्य तमालोमेरु को दक्षिण दिशि भरतक्षेत्रसवधी तीन चौबीसीके बहत्तर जिनेन्द्रेभ्य. नम अध्यं । याही गिरि के उत्तर जु ओर, ऐरावत क्षेत्र बनो निहोर । तामे चौबीसी हैं जु तीन, वसु द्रव्य लेय पूजो प्रवीन ।। ॐ ह्री श्रीपुष्कराद्धंद्वीपकी पश्चिम दिशि विद्य त-मालीमेह की उत्तरदिशि ऐरावतक्षेत्रसम्बन्धी तीसचौबीसीके बहत्तर जिनेन्द्रेभ्योऽयं । द्वीप अढाई के विष, पञ्चमेरु हित दाय । दक्षिरण उत्तर तासुकै, भरत ऐरावत भाय । भरत ऐरावत भये, एक क्षेत्र के माहीं । चौबीसी है तीन, दसों दिशि ही के ठाहीं॥ दसों क्षेत्र के तीस सात सौ बीस जिनेश्वर । अर्घ लेय फरजोडि जर्जी मन शुद्ध मुदित कर ।। ॐ ह्री पचमेर सम्बन्धी भरतरावत क्षेत्र के विष तीन चौबीसी के सात सौ बीस जिनेन्द्रेभ्य नम अध्यं नि०। जयमाला दोहा-चौवीसी तीसो नमों, पूजा परम रसाल । मन-वच-तन को शुद्धकरि, अब वरणों जयमाल ।। जय द्वीप अढ़ाई मध्य सार, गिरि पांच मेरु उन्नत अपार ।
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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