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________________ १०८ ] ॐ ही घातकीखण्ड द्वीपकी पूर्व दिशि विजय मेरु की दक्षिण दिशि भरत क्षेत्र सम्वन्धी तीन चौवीसी के बहत्तर जिनेन्द्रेभ्यो नम प्रर्घ्यं नि० इसी द्वीपको प्रथम शिखरकी, उत्तर ऐरावत जु महान । श्रागत नागत वर्तमान जिन, बहतरि सदा सासते जान || तिनके चररणकमलको निशदिन, अर्धचढाय करू उर ध्यान । इस संसार भ्रमरणतै तारो, श्रहो जिनेश्वर ! करुणावान || ॐ ह्री घातकीखण्ड द्वीप की पूर्व दिशि विजय मेरु की उत्तरदिशि ऐरावतक्षेत्र सवधी तीन चीबीसी के बहत्तर जिनेन्द्रेभ्यो नम अर्घ्यं नि० चौपाई | खडघातकी अचल सुमेर, दक्षिण तास भरत चहुँ घेर । तामे चौबीसी त्रय जान, श्रागत नागत रु वर्तमान || ॐ ह्री घातकीखण्ड की पश्चिम दिशि अचल मेरु की उत्तर दिशि ऐरावतक्षेत्र सबधो तीन चौबीसी के बहत्तर जिनेन्द्रेभ्य नम अर्घ्यं नि० अचल मेरु उत्तर दिश जान, ऐरावत शुभ क्षेत्र बखान । तामे चौबीसी त्रय जान, श्रागत नागत प्ररु वर्तमान || ॐ ह्री घातकीखण्ड की पश्चिम दिशि प्रचल मेरु की उत्तर दिशि ऐरावतक्षेत्र सबधी तीन चौबीसी के बहत्तर जिनेन्द्र भ्य नम अर्घ्य नि० सुन्दरी छन्द द्वीप पुष्करकी पूरब दिशा, मन्दिर मेरुकी दक्षिरण भरतसा । ताविषे चौबीसी तीन जू, अर्घ लेय जजू परवीन जू ॥ ॐ ह्री पुष्कर द्वीप की पूर्वं दिशि अचलमेरु की दक्षिण दिशि भरत क्षेत्र सवघी तीन चौवीसी के बहत्तर जिनेन्द्रेभ्य नम अध्यं नि० । गिरि सु मन्दिर उत्तर जानिये, क्षेत्र ऐरावत सु बखानिये | ताविषे चौबीसी तीन जू, श्रर्घ लेय जजू परवीन जू ॥
SR No.010298
Book TitleJain Stotra Puja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeer Pustak Bhandar Jaipur
PublisherVeer Pustak Bhandar Jaipur
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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