SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७८ : जनसाहित्यका इतिहाग है ? प्रबग अनुगोगमार गत्तरपणाकी गाला- टीने प्रारगम' वीरगेनम्यागीने या रपष्टीकरण ते तिा है कि पीपलम यन्तु अधिकार अन्तर्गत नागार्ग अन्तर्गत गीग अनुगोगटागेगंग बचननामक छठा अनुयोग गर है। गो चार वर्षारि है । उनांगे या नागा दूगरे अधिकारको ग्यागत मन्गोग गेमेंगे पांची अनुगोगार गागाणनागा है। उगोगे प्रतापगाणानुगग लिया गया है। पुन पर जिनामा हो गाती पगानिप्राशनग गर बाती गग गिराने गित आभारगर यिा? गह पहले रिग आये है कि द्वारशागकी रनना गौतग गणपग्ने भगवान महावीरकी वाणीक जागापरी । गोतग गणधर भगनानगे प्रश्न करते थे और भगवान उगा उत्तर देते थे। पदमागमके बहुतसे सूत्र प्रश्नोत्तरम्पमे ही निब है जो ग वा सूचक है कि गोतम और भगान महानोरके बीच प्रश्नोत्तर होते थे और गौतम गणधग्ने प्रामाणिाताकी सुरभागे लिए उन्हें उगी म्पमें विवत किया था और वहांगे लेकर संग्रह गरने वाले भूतवलि आचार्यने भी उन्हें उगी रूपमै रगा । यथा 'गोषेण मिलाइट्ठी दव्यपगाणेण फेवडिया ? अणता ॥ २ ॥ ओघरो मिथ्यादृष्टि द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा कितने है ? अनन्त है ॥ २ ॥ इमकी धवला-टी में गह प्रश्न उठाया गया है कि प्रश्नोत्तरस्प दिये बिना 'ओघेण मिच्छाइट्ठी दन्नपगाणेण अणता' (ओपसे मिथ्यादृष्टि द्रव्यप्रमाणकी अपेक्षा अनन्त है) ऐमा क्यो नही नहा ? TM गमाधान करते हुए धवलाकारने कहा है कि-'इग पकारकी गूजरचनाका फल है-अपने कर्तव्यको हटाकर भाप्तके कर्तृत्वका प्रतिपादन करना। अर्थात् भूतवलिने ग प्रकारको सूत्ररचनामे यह बतलाया है कि इसके वार्ता स्वय वह नहीं है । किन्तु यह आप्तपुरुष भगवान महावीरका कथन है। तव पुन यह प्रश्न किया गया कि-'तव भूतबलिने क्या किया?' तो उत्तर दिया गण कि भूतवलि तो आप्तवचनोके व्याख्याता मात्र है। अत पटवण्डागममे जो कुछ कहा गया है उगका उद्गग-स्थान भगवान् महावीरकी वाणी है। भगवान महावीरको जैनागमोमें सर्वज्ञ सर्वदर्शी बतलाया है। और बौद्ध त्रिपिटिकोने भी पता चलता है कि भगवान महावीरके सर्वज्ञ सर्वदर्शी होनेकी चर्चा थी। सर्वज्ञ सर्वदर्शीका मतलब है-सबको जानने देखने वाला, १. पटखा, पु० १, पृ० १२६ । २ वही, पु० ३, पृ० १०-११ ।
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy