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________________ ६ 'पमत्त राजदा ' ॥ १४॥ प्रमाद युवा जीवको प्रगत्त कहते हैं और हिसा, झूठ, चोरी, अब्रह्म और परिगहमे विरतको रायत कहते है । प्रमादी सयगीको प्रमत्तसयत कहते हैं । कहा भी है - 'जो व्यक्त या अव्यक्त प्रगाद में निवास करता है किन्तु समरत गुणो और शीलोमेयुक्त महाव्रती होता है उसे प्रमत्तसयत कहते है । उराका आचरण प्रमादके कारण सदोप होता है । ७ 'अप्पमत्त सजदा ॥१५॥' जो प्रमत्तसयत नही है उन्हें अप्रमत्तरायत कहते है । अर्थात् प्रमादरहित सयमी जीवोको अप्रमत्तरायत कहते है । आगे सब गुणस्थान सयमी मनुष्यो के ही होते हैं | सातवें गुणस्थानके वाद आठवे गुणस्थान दो श्रेणियां प्रारम्भ होती है । एक उपशमश्रेणि और एक क्षपक श्रेणि । उपशमश्रेणिमे चढने वाला जीव मोहनीयकर्मको नष्ट न करके दवाता जाता है । इमोसे ग्यारहवें गुणस्थानमें पहुँचकर वह नीचे गिर जाता है । और क्षपकश्रेणिपर आरोहण करने वाला मोहनीयकर्मको नष्ट करता हुआ आगे बढता है । अत उसका पतन नही होता। ये दोनों श्रेणियां ध्यानमग्न माधुओके ही होती है । . छवखंडागम • ७१ ८ ' अपुव्यकरणपविट्ठसुद्धिराजदेसु अस्थि उवसमा खवा' ॥१६॥' आठवे गुणस्थानका नाम अपूर्वकरणमयत है । 'करण' शब्दका अर्थ है परिणाम --जीवके भाव या विचार । अपूर्व अर्थात् जो इससे पहले नही हुए, ऐसे सत्परिणाम वाले सयमी अपूर्वकरणसयत कहे जाते है । इन अपूर्वकरणसयतोमे उपशमश्रेणवाले भी होते है और क्षपकश्रेणिवाले भी होते है । ९ 'अणियट्टिवादरसापराइयपविट्ठसुद्धिसजदे अस्थि उवसमा खव ॥ १७॥ ' नौवें गुणस्थानका नाम अनिवृत्तिवादरसाम्परायसयत है । इस गुणस्थानमे एक समयमे एक ही परिणाम निश्चित है । अत इसमें समानसमयवर्ती जीवो - के परिणाम सदृश ही होते हैं । इसीको अनिवृत्तिशब्दसे कहा है । साम्पराय - शब्दका अर्थ है कपाय और बादरका अर्थ है स्थूल । अत स्थूल कपायको वादरसाम्यराय कहते है और अनिवृत्तिवादरसाम्परायरूप परिणामवाले सयमियोको अनिवृत्तिवादरसाम्परायसयत कहते हैं । वे सयत उपशमक भी होते है और क्षपक भी होते है । १. पट्ख०, १४, पृ० १७५ । २ वही, पृ० १७८ । ३ वही, पृ० १७९ | ४. वही, पृ० १८३ ।
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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