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________________ ४३६ . जैनसाहित्यका इतिहास उनकी टीका उनकी विद्वत्ता और रचना चातुर्यको परिचायिका है । इससे उनकी अध्ययन शीलताका पता चलता है। उनकी टीकाएँ कर्मसाहित्यके उद्धरणोसे और कर्मविपयक विविध चर्चाओसे भरी हुई है । उसको देखनेसे उनके कर्मविषयक पाण्डित्यके प्रति गहरी आस्था होती है । टीकाकी शैली प्रसन्न और भाषा सरल है । कर्मसाहित्यके अभ्यासीके लिए यह टीका अवश्य ही अवलोकनीय है । ग्रन्थकार तथा उनका समय उक्त कर्मग्रन्थोके रचयिता श्री देवेन्द्रसूरिने अपनी टीकाके अन्तमें अपनी प्रशस्ति दी है। उससे ज्ञात होता है कि उनके गुरुका नाम जगच्चन्द्रसूरि था और वे चान्द्रकुलमें हुए थे । तथा विवुध श्री धर्मकीर्ति और विद्यानन्दसूरिने उनके कर्मग्रन्थोकी टीकाका सशोधन किया था। ___ गुर्वावलि में श्री जगच्चन्द्रसूरिके विषयमें लिखा है कि वि०स० १२८५में इन्होने उन तप धारण किया, इससे इनकी ख्याति 'तपा' नामसे हो गई और इनका वृद्धगच्छ तपागच्छ नामसे प्रसिद्ध हुआ। दैलवाराके प्रसिद्ध मन्दिरोंके निर्माता श्री वस्तुपाल तेजपाल इनका बहुत आदर करते थे। तपागच्छकी स्थापनाके बाद श्री जगच्चन्द्रसूरिने अपने शिष्य देवेन्द्रसूरि और विजयचन्द्रसूरिको सूरिपद दिया। ____ श्री देवेन्द्रसूरिने उज्जैनी नगरीके वासी सेठ जिनचन्द्रके पुत्र वीरधवलको प्रतिबुद्ध करके वि०स० १३०२में दीक्षा दी थी और वि०सं० १३२३में गुजरातके प्रल्हादनपुर नामक नगरमें उसे सूरिपद दिया था। यही वीरधवल विद्यानन्दसूरिके नामसे प्रसिद्ध हुए और उन्होने अपने गुरु श्री देवेन्द्रसूरि रचित कर्मग्रन्थोकी टीकाका सशोधन किया । गुर्वावलीके अनुसार वि०स० १३२७में देवेन्द्रसूरिका स्वर्गवास हुआ। अत उनका समय विक्रमकी तेरहवी शताब्दीका उत्तरार्ध तथा चौदहवीका पूर्व भाग है। संस्कृत कर्मग्रन्थ विक्रमकी १५वी शताब्दीके प्रारम्भमें जयतिलक सूरिने संस्कृतके ५६९ श्लोकोमें चार कर्मग्रन्थोकी रचना की थी। कर्मप्रकृति नामक अन्य ग्रन्थ जिन रत्नकोशमे कर्मप्रकृति नामक आठ ग्रन्योका निर्देश है । इनमेंसे पहलीके रचयिता शिवशर्म सूरि है इसके सम्बन्धमे पीछे विस्तारसे लिख आये है। दूसरी१ 'तदादिवाणद्विप भानुवर्षे श्रीविक्रमात् प्राप तदीयगच्छ । वृहद्गणाह्वोऽपि तपेति नाम श्रीवस्तुपालादिभिरर्च्यमान ।'
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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