SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 374
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६२ : जैनसाहित्यका इतिहास यह तो हम लिख ही आये है कि उसमें विशेपावश्यक भाष्यसे उद्धरण दिये गये है और उनके आधार पर उसके रचना कालकी पूर्वावधि निश्चित हो जाती है । अन्य उद्धरणोके स्थानका पता न लग मकनेसे अथवा उनके स्थल में विवाद होनेसे किसी निष्कर्ष पर पहुचने में जो कठिनाई उपस्थित होती है उसका विवरण दिया जाता है। दि० पंचसग्रहका समय निर्णीत करते हुए यह लिख आये हैं कि शतक चूणिकार उससे परिचित थे। उसकी पुष्टिमें एक उद्धरण और भी मिलता है। नीचे लिखी गाथा श० चू० में उद्धृत है ‘ज सामण्णं गहणं भावाण णेवकटु आगार । अविसेसिकण अत्थे दसणमिई वुच्चए समए ।'-श० चू० पृ० १८ । यह गाथा दि० पं० सं० के प्रथम अधिकारकी १३८ वी गाथा है। यह धवलामें भी उद्धृत है और द्रव्य संग्रहमें तो इसे मूलमें सम्मिलित कर लिया गया है । शतक चूणिसे यह गाथा अन्य श्वेताम्बर टीकाओ में भी उद्धृत की गयी है। यथा कर्मविपाक नामक प्रथम नव्य कर्म ग्रन्थको गाथा १० की टीकामें वह उद्धृत है और सम्पादक ने उसे वृहद्दव्यसंग्रहको बतलाया है। किन्तु मूलमें वह दि० पं० सं० की ही है। अत. शतक चूर्णिकार दि० प० स० से अवश्य सुपरिचित थे । अस्तु, शतक गाथा ९ की चूर्णिमें गुणस्थानोका कथन करते हुए अनेक गाथाए उद्धृत की गयी है । उनमें से प्रथम गुणस्थानके वर्णनमें नीचे लिखी ५ गाथाए एक साथ क्रमवार उद्धृत हैउक्तंच-मिच्छत्त तिमिर पच्छाइयदिट्ठी रागदोससंजुत्ता। धम्म जिणपण्णत्त भवावि णरा ण रोन्ति ॥१॥ मिच्छादिट्ठी जीवो उवइट्ठ पवयण ण सद्दहइ । सद्दहइ असन्भाव उवईट्ठ वा अणुवइळें ॥२॥ पदमक्खरं च एक्कपि जो ण रोएइ सुत्तणिदिळें । सेसं रोएन्तो वि हु मिच्छाद्दिट्ठी मुणयन्वो ॥३॥ सुत्त गणहरकहियं तहेव पत्तेयबुद्धकहियं च । सुयकेवलिणा रइय अभिण्णदसपुग्विणा कहिय ॥४॥ अहवा-त मिच्छत्त जमसद्दहण तच्चाण जाण अत्थाण । स इयमभिग्गहियं अणभिग्गहियं च त तिविहं ॥५॥' इनमें से गाथा २ तथा ५, दि० प० स० के प्रथम अधिकारको ८ वी तथा १. दि० ग्रन्थोमें 'भण्णए' पाठ है।
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy