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________________ अन्य कर्मसाहित्य ३३३ न्द्रियमस्ति न शेषाणोति कथमवगम्यते ? इति चेन्न, स्पर्शनेन्द्रियवन्त एते इति प्रतिपादक कार्योपलम्भात् । क्व तत्सूत्रमिति चेत् कथ्यते----- 'जाणदि पस्सदि भुंजदि सेवदि पस्सिदिएण एक्केण । कुर्णादि य तस्सामित्त थावरु एवं दिओ तेण ।। १३५ ।। 'वनस्पत्यन्तानामेकम्' इति तत्वार्थसूत्राद्वा -- ( षट्ख, पु० १, पृ० २३९ ) । शका- वे एकेन्द्रिय जीव कौन से है ? समाधान -- पृथिवी, जल, अग्नि वायु और वनस्पति । शका-इन पात्रों के एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है, शेष इन्द्रिया नही होती यह कैसे जाना ? इस समाधान -- पृथिवी आदि जीव एक स्पर्शन इन्द्रिय वाले ही होते है, प्रकार का कथन करनेवाला आर्पवचन पाया जाता है ? शका----वह सूत्र रूप आर्ष वचन कहाँ है ? समाधान - उसे कहते है- 'क्योकि स्थावर जीव एक स्पर्शन इन्द्रियके द्वारा ही जानता है देखता है, खाता है, सेवन करता है और उसका स्वामीपना करता है इसलिये उसे स्थावर एकेन्द्रिय कहते हैं 1, अथवा 'वनस्पत्यन्तानामेकम्' तत्वार्थ सूत्र के इस वचनसे जाना जाता है कि उनके एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है ।' उक्त आर्प रूपसे उद्धृत गाथा जीव समासको ६९वी गाथा है । मत जीव समासका वीरसेन स्वामी के चित्तमें बहुत आदर था, यह स्पष्ट है । चूकि जीवसमास नामका अन्य कोई ग्रन्थ उपलब्ध नही है और न उसके अस्तित्वका ही कोई सकेत मिलता है, अत यही मानना पडता है, कि वीर सेन स्वामीके द्वारा प्रमाण रूप से उद्धृत जीव समास पच सग्रह के अन्तर्गत जीव समास नामक अधिकार ही होना चाहिये । श्व ेताम्बर साहित्य मे जीव' समास प्रकरण नामका एक गाथाबद्ध प्राचीन ग्रन्थ है जिसका सकलन इसके एक उल्लेख के अनुसार दृष्टि वाद अग से किया गया है । चू कि पञ्चसग्रह एक संग्रहात्मक ग्रन्थ है अतः हमें सन्देह हुआ कि जीव समास नामक अधिकार कही उसका तो ऋणी नही है किन्तु दोनोका मिलान करने पर हमारा सन्देह ठीक नही निकला । यद्यपि यत्र तत्र कुछ १ श्री जीवसमास प्रकरण मलधारो हेमचन्द्र रचित वृत्ति के साथ आगमोदय समिति से प्रकाशित हो चुका है । २. बहुभग दिट्ठीवाएं दिट्ठत्थाणं जिणोवइट्ठाण । धारण पत्तट्ठो पुण जीवसमासत्थ उब उत्तो ॥ २८५ ॥ --- जी० स० ।
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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