SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 343
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्य कर्मसाहित्य • ३३१ सेलठ्ठि कठिवेत्ते णियभेएणणु हरतो माणो । णारय तिरय परामरगईसु उप्पायो कमसो ॥१७५॥ वेलुवमूलोरभयसिंगे गोमुत्तेएण खोरप्पे । सरिसी माया णारयतिरियणरामरेसु जणइ जिम ॥१७६।। किमिराय चक्क तणु मल हरिदराएण सरिसमो लोहो । णारय तिरिक्ख-माणुस देवसुप्पायओ कमसो ॥१७७|| -(पृ० ३५०) जी० स० (पं० स० ) में ये गाथाए इस प्रकार है सिलभेय पुढविभेया धूलीराई य उदयराइसमा । णिर तिरि पर देवत्त उविति जीवा हु कोहवसा ।।११२।। सेलसमो अद्विसमो दारुसमो तह य जाण वेत्तसमो । णिर-तिरि-णर देवत्त विति जीवा हु माणवसा ॥११३॥ वसीमूल मेसस्स सिंग गोमुत्तिय च ( खोरप्प) । णिर-तिरि-णर-देवत्त उवितिं जीवा हु मायवसा ॥११४॥ किमिराय चक्क मल कद्दमो य तह चेय जाण हारिद्द । गिर-तिरि-णर-देवत्त उविति जीवा हु लोहवसा ॥११५॥ यहाँ भी आगे की गाथा दोनोमें समान है । ज्ञानमार्गणा ८ गाथाएँ उद्धृत है जो जी० स० में यथाक्रम है। संयम मार्गणामें उद्धृत ८ गाथाएं भी जी० स० में यथाक्रम है। मध्यकी केवल एक गाथा सयमासयमवाली ऐसी है जो धवलामें छोड दी गई है । दर्शन मार्गणा में उद्धृत तीन गाथाएं भी जी० स० में यथाक्रम है। लेश्या मार्गणामें उद्धृत दस गाथायें भी जी० स० में यथाक्रम है। किन्तु सम्यक्त्व मार्गणामें उद्धृत पाच गाथाओमें से जी० स० में शुरु की तीन गाथायें तो यथाक्रम है अन्तकी दो गाथाओमें से उपशम सम्यक्त्व का स्वरूप बतलाने वाली गाथा भी जी० स० में है किन्तु वेदकसम्यक्त्ववाली गाथा नही है उसके स्थान में अन्य गाथा है। इस तरह सत्प्ररूपणा सूत्रो की धवला टीका में उद्धृत बहुत-सी गाथायें पचसग्रह के प्रथम अधिकारमें वर्तमान है केवल उक्त गाथामो की स्थिति चिन्त्य है जीव समास अधिकारमें गाथा १८२ तक वीस प्ररूपणाओका कथन समाप्त हो जाता है । यहां तकका कथन क्रमबद्ध और व्यवस्थित है। किन्तु आगेका कथन वैसा व्यवस्थित नहीं है । १८२ वी गाथामें वीस प्ररूपणाओंके कथन का उपसहार करनेके पश्चात् पुन लेश्याओका वर्णन प्रारम्भ हो जाता है। यह कथन दस गाथाओमें है। इसमें जीवोके गतिके अनुसार द्रव्यलेश्या और भावलेश्याका कथन
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy