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________________ चतुर्थ अध्याय अन्य कर्मसाहित्य छक्खडागम, कसायपाहुड आदि मूल आगमग्रन्थोके अतिरिक्त कर्मविषयक अन्य प्राचीन साहित्य भी उपलब्ध है । यह साहित्य मूल आनुगमानुसारी है और इसका रचनाकाल विक्रमकी पांचवी शताब्दीसे लेकर विक्रमकी नवम शताब्दीतक है। यद्यपि कर्म-विषयक मूल और टीका ग्रन्थों का निर्माण विक्रमकी १५ वी-१६वी शताब्दीतक होता रहा है । पर इस अध्यायमें प्राचीन कर्म-साहित्य का ही इतिवृत्त प्रस्तुत है। यहाँ पर कर्म-प्रकृति, वृहत्कर्म-प्रकृति, शतकचूणि, सित्तरी, कर्मस्तव और प्राकृत-पचसग्रह आदि ग्रन्थोपर विचार किया जारहा है । ___ कर्म-प्रकृिति ग्रन्थको सर्वाधिक प्राचीन कहा जाता है । श्वेताम्बर सम्प्रदायमें इस ग्रन्थपर कई चूर्णि और टीकाएँ भी उपलब्ध है। इसमें सन्देह नहीं कि कर्मप्रकृति प्राचीन ग्रन्थ है और इसका उपयोग दोनो ही परम्पराओंमे होता रहा है। कर्मप्रकृति इस ग्रन्थमें ४७५ गाथाएँ है । प्राकृत चूणिके साथ मलयगिरिकी संस्कृत टीका भी उपलब्ध है। ग्रन्थपर एक अन्य टीका उपाध्याय यशोविजयजी ने भी लिखी है। नाम-ग्रन्थाकारने ग्रन्थको अन्तिम गाथामें कहा है कि मैंने कर्म-प्रकृतिसे इसका उद्धार किया है । किन्तु स्वय उन्होंने अपनी इस कृतिको कोई नाम नहीं . दिया' उसीपरसे इसनथका नाम कर्मप्रकृति प्रवर्तित हुमा जान पडता है। किंतु चूणिकारने प्रथम गाथाकी उत्थानिकामें लिखा है कि विच्छिन्न-कर्मप्रकृति महानन्थके अर्थका ज्ञान करानेके लिए आचार्यने सार्थक नामवाला 'कर्मप्रकृति-सग्रहणी' नामक प्रकरण रचा है । उससे ज्ञात होता है कि इस ग्रन्थ का नाम कर्मप्रकृति-सनहणी था । शतकचूर्णिमें तथा सित्तरीचूर्णि* इसी नामसे इसका निर्देश मिलता है। १.-'इय कम्मप्पअडीओ जहा सुय नीय मप्प मइण्णो वि । सोहियणा भोग कर्य कहनु वर दिट्टी वायन्न ॥५६॥-कर्म प्र०, मत्ता०।। २-'विच्छिन्न कम्मपयडिमहागंस्थत्य संवोहणत्य आरद्ध आयरिण्ण तग्गुणणामग कम्म पयढी सगहणी णाम पगरण । क० प्र० चू०। ३-'जहा कम्मपडिमगणिए भणियं तहा भणामि,-पृ ४, एयाणि जहा कम्मपयटिमगह णीय ,-पृ. २६ । 'एतासिं अत्यो जहा कम्मपडि सगहणी -पृ० ४३ । ० चू०। ४.-'उब्वट्टणाविही जहा कम्भपयटी सगहणीए-१० ६१ । 'विमेसपवची जहा कम्म
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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