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________________ - - कसायपाहुड . १३ नाग कर्मप्रकृति बतलाया है । यह वही कर्मप्रकृतिप्राभृत है जिसके अन्तिम ज्ञाता दिगम्वर परम्परामे धरसेनाचार्य थे और जिसे उनसे पढकर भूतवलि और पुष्प. दन्तने पट्खण्डागमकी रचना की थी। अत नागहस्ती पूर्वपदारावेदी थे। उनके समयमे पूर्वोके ज्ञानना बहुत कुछ लोप हो गया था। सम्भवत इसीसे उन्होने वाचकोकी परम्परा (वग) स्थापित करके उनके बचे-खुचे अगोको सुरक्षित बनाये ररानेका प्रयत्न किया था। श्वेताम्बर परम्परामे पूर्वोके ज्ञानकी परम्पराका चलन वीर नि० के एक हजार वर्ष पर्यन्त माना गया है । माथुरी वाचनाके समयमें वलभीमे आगमवाचना करनेवाले नागार्जुनको नन्दिसूत्रमें वाचक तथा उनके गुरु हिमवंतको पूर्वधर लिखा है। इससे प्रकट होता है कि कम-से-कम माथुरी वाचना पर्यन्त पूर्वविद् थे । (किन्तु माथुरी और उसके समकालीन वालभी वाचनाओौ यद्यपि ग्यारह अगोकी वाचना तो हुई, किन्तु पूर्वोके किसी भी अशकी वाचना नही हुई । यदि हुई होती तो माथुरी वाचनाके डेढसौ वर्ष वाद वलभीमें हुई अन्तिम वाचनामें ग्यारह अगोकी तरह पूर्वोके भी कुछ अश अवश्य लिपिवद्ध किए जाते, किन्तु ऐसा नही किया गया । अत स्पष्ट है कि श्वेतावर परम्परामें पूर्वोका ज्ञान नागहस्तीसे पहले ही विलुप्त हो चुका था । वह भी घटते-घटते देवद्धिगणिके कालमें केवल विषयसूची आदिके रुपमें ही अवशिष्ट रहा, जिसका प्रमाण नन्दिसूत्र तथा समवायागसूत्रमें पायी जानेवाली दृष्टिवादविपयक सूची है) अस्तु, अब हमे देखना है कि नन्दिसूत्रको स्थविरावलीमें आगत आर्यमगु और नागहस्ती कब हुए थे। ___ नन्दिसूत्रमें आर्यमगुके पश्चात् आर्य नन्दिलको स्मरण किया है और उनके पश्चात् नागहस्तीको । नन्दिसूत्रकी चर्णि और हरिभद्रकी नन्दिवृत्तिमें भी यही क्रम पाया जाता है। तथा दोनोमें आर्यमगुका शिष्य आर्य नन्दिलको और आर्य नन्दिलका गिष्य नागहस्तीको बतलाया है । इससे नागहस्ती आर्यमगुके प्रशिष्य अवगत होते है। किन्तु मुनि कल्याणविजयजीका कहना है कि आर्यमगु और आर्य नन्दिलके वीचमे चार आचार्य और हो गये है और नन्दिसूत्रमें उनसे सम्बद्ध दो गाथाएँ छूट गई है जो अन्यत्र मिलती है । अपने इस कथनके समर्थनमें उनका कहना है कि आर्य मगुका युगप्रधानत्व वीर नि० ४५१ से ४७० तक था । परन्तु आर्य नन्दिल आर्य रक्षितके पश्चात् हुए थे और आर्य रक्षितका स्वर्गवास वी० नि० स० ५९७ मे हुआ था। इसलिए आर्य नन्दिल वी० नि० स० ५९७ के पश्चात् हुए थे। इस तरह मुनिजीकी कालगणनाके अनुसार आर्य मगु और आर्य नन्दिलके मध्यमें १२७ वर्षका अन्तराल है । और उसमें आर्य नन्दिलका समय और जोड देने पर आर्य मगु और नागहस्तीके वीचमें १५० वर्पके लगभग अंतर वैठता है । अत मुनि कल्याणविजयजीके अनुसार आर्य मगु और नागहस्ती सम
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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