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________________ तृतीय अध्याय द्वितीय परिच्छेद जयधवला-टीका नामकरण धवला-टीकाके पश्चात् दूसरी महत्त्वपूर्ण टीका 'जयधवला' है। यह टीका 'कपायपाहुड' पर लिखी गयी है । टीकाकारने इस टीकाकी प्रथम मङ्गल-गाथाके आदिमें ही 'जयइ धवलगतेए' पद देकर इसके नामकी सूचना दी है । अन्तमें तो इसके नामका स्पष्ट उल्लेख किया है एत्य समप्पइ धवलियतिहुवणभवणा पसिद्धमाहप्पा । पाहुडसुत्ताणमिमा जयघवलासण्णिया टीका ॥१॥ 'तीनो लोकोको धवलित करनेवाली और प्रसिद्ध माहात्म्यवाली कपायपाहुडसूत्रोकी यह 'जयधवला' नामको टीका यहां समाप्त होती है।' उपर्युक्त पद्यसे यह तो स्पष्ट है कि इस टीकाका नाम 'जयधवला' है । पर इस नामकरणका क्या कारण है, यह ज्ञात नहीं होता। टीकाकारने टीकाके आरम्भमें चन्द्रप्रभस्वामीकी जयकामना करते हुए उनके धवल वर्ण शरीरका उल्लेख किया है । अत यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि चन्द्रप्रभ स्वामीके धवलवर्णके आधारपर इस टीकाका नामकरण जयकामनाको मिश्रित कर 'जयधवला' किया गया हो। इसके पूर्व छक्खडागमपर धवला-टीका रची जा चुकी थी। इसीके आधारपर कपायपाहुडकी इस टीकाका नाम 'जयधवला' रखा गया होगा । और दोनोमें भेद करनेके लिए 'जय' विशे पण नियोजित किया होगा। ___'जयधवला' टीका भी 'धवला' टीकाके समान ही विशद, स्पष्ट और गम्भीर है । सम्भव है कि इस कारणसे भी इसे 'जयधवला' नाम दिया गया हो । एक अन्य हेतु यह भी सम्भव है कि इन टीकाओकी उज्ज्वल ख्यातिने तीनो लोकोको धवलित कर दिया है । अतएव इनका सार्थक नाम धवला और जयधवला है। जयधवला टीका शैली और महत्त्व इस टीकाकी शैली व्याख्यानात्मक होने पर भी नये तथ्योंसे सम्बद्ध है। टीकाकार जिस किसी आचार्यका मत देते हैं, उसे दृढताके साथ अधिकारपूर्वक
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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