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________________ चूर्णिसूत्र साहित्य १९९ सम्यक्त्वकालके भीतर जीव असयमको भी प्राप्त हो सकता है, सयमासयमको भी प्राप्त हो सकता है और छह आवली काल शेष रहनेपर सासादन गुणस्थानको भी प्राप्त हो सकता है। यदि सासादनको प्राप्त करके मरता है तो नरकगति, तिर्यञ्चगति और मनुष्यगतिको प्राप्त नही कर सकता, किन्तु नियमसे देवगतिमें जाता है। यह पाहुडचूणिसूत्रका अभिप्राय है। किन्तु भगवन्त भूतवलिके उपदेशानुसार उपशमश्रेणिसे उतरता हुआ जीव सासादन गुणस्थानको प्राप्त नही करता।' ५ उसी में पुन अन्यत्र लिखा है-'यह वात प्राभृतसूत्र (कसायपाहुडचूर्णिसूत्र) के अभिप्रायानुसार कही गई है। परन्तु जीवस्थानके अभिप्रायसे सख्यातवर्षकी आयुवाले मनुष्योमें सासादनगुणस्थान सहित निर्गमन नही बन सकता, क्योकि उपशमश्रेणिसे उतरे हुए मनुष्यका सासादनगुणस्थानमें गमन सम्भव नही है।' __खुद्दावन्धकी धवला-टीकामें महाकर्मप्रकृतिप्रामृत और चूर्णिसूत्रकर्ताके उपदेशोमें भेद बतलाते हुए लिखा है-'मिथ्यादृष्टि गुणस्थानके अन्तिम समयमें दस प्रकृतियोकी उदयव्युच्छिति होती है, यह महाकर्मप्रकृतिप्राभृतका उपदेश है । चूर्णिसूत्रकर्ताके उपदेशके अनुसार मिथ्यादृष्टिगुणस्थानके अन्तमें पाँच प्रकृतियोका उदयविच्छेद होता है, शेष पाँचका उदयविच्छेद सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें होता है।' ____ महाकर्मप्रकृतिप्राभृतके आधारपर पट्खण्डागमकी रचना हुई है। अत षट्खण्डागमके मत अवश्य ही महाकर्मप्रकृतिप्राभृतके मत होने चाहिये । और इस तरहसे चूणिसूत्रकारके मत महाकर्मप्रकृतिप्राभृतके मतोसे भी भिन्न थे, यह कहा जा सकता है । अत ये सैद्धान्तिक मतभेद बहुत प्राचीन प्रतीत होते है। खुद्दावन्धकी ही धवला-टीकामें एक अन्य भी उल्लेखनीय चर्चा है, जो इस प्रकार है शका-कसायपाहुडसुत्तके साथ यह सूत्र विरोधको प्राप्त होता है ? समाधान-सचमुचमें कषायप्राभृतके सूत्रसे यह सूत्र (२४) विरुद्ध पडता है किन्तु यहाँ एकान्तग्रह नही करना चाहिये कि यही सत्य है या वही सत्य है, क्योकि श्रुतकेवलियो या प्रत्यक्ष ज्ञानियोके बिना इस प्रकारका निश्चय करनेपर मिथ्यात्वका प्रसग आयेगा। १ पु.६, पृ. ४४४ । २ 'एसो महाकम्मपपडिपाहुडउवएसो । चुर्णिणसुत्तकत्ताराणमुवेण्सेण पचण्ण' पयडीण मुदयवोच्छेदो।' -पु. ८, पृ. ९ । ३. पु. ८, पृ. ५६-५७ ।
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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