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________________ १९० · जैनसाहित्यका इतिहास इसप्रकार पेज्जमें निक्षेपोको योजना करके चूणिसूत्रकार दोसमे निक्षेप योजना करते है। 'दोसका' निक्षेप करना चाहिये-नामदोस, स्थापनादोस, द्रव्यदोस और भावदोस । नेगम, सग्रह और व्यवहार सभी निक्षेपोको विषय करते है । ऋजुसूत्रनय स्थापनाको छोड शेप तीन निक्षेपोको स्वीकार करते है। शब्दनय नाम निक्षेप और भाव निक्षेपको विषय करते है।' सुगम जानकर यतिवृपभाचार्यने नामनिक्षेप, स्थापनानिक्षेप आगमद्रव्यनिक्षेप और नोआगमद्रव्यनिक्ष पके दो भेदोका कथन नही किया। उसके तीसरे भेदका कथन करते हुए वह कहते है 'जो द्रव्य जिस उपघातके निमित्तमे उपभोगको नही प्राप्त होता वह उपधात उस द्रव्यका दोष है । यही तद्वयतिरिक्तनोमागमद्रव्यदोप है।' 'वह उपघात दोस कौनसा है ? साडीका अग्निसे जल जाना या चूहोके द्वारा खाया जाना आदि उपघातदोस है । भावदोसका कथन स्थगित करते है।' ___ इस प्रकार दोसमें निक्षेप योजना करके चूर्णिसूत्रकार कषायमें निक्षेप योजना करते है 'कपायका निक्षेप करना चाहिये-नामकषाय, स्थापनाकषाय, द्रव्यकषाय, समुत्पत्तिकषाय, आदेशकषाय, रसकषाय और भावकषाय ।' नैगमनय सभी कषायोको स्वीकार करता है। संग्रह और व्यवहारनय समुत्पत्तिकषाय और आदेशकषायको स्वीकार नहीं करते। ऋजुसूत्रनय इन दोनोको और स्थापना कषायको स्वीकार नहीं करता । शब्द, समभिरूढ और एवभूतनय नामकषाय और भावकषायको विषय करते है। नामकषाय, स्थापनाकपाय, आगमद्रव्यकषाय, ज्ञायकशरीर नोमागमद्रव्यकषाय और भाविनोआगमद्रव्यकषायका स्वरूप सुगम जानकर यतिवृषभने नही कहा । नो आगम तद्वयतिरिक्त द्रव्यकषायका स्वरूप वह कहते है १ 'दोसो णिक्खियन्वो णामदोसो, ढवणदोसो, दन्वदोसो भावदोसो चेदि। वही पृ २७७ । • 'गोआगमदव्वदोसो णाम ज दव्व जेण उवधादेण उवभोग ण एदि तस्स दव्वस्स सो उवधादो दोसो णाम। त जहा, सादियाए अग्गिदद्ध वा मूसयभक्खिय वा एवमादि। वही, पृ० २८१-२८० । 'कमाओ ताव णिक्खियन्वो णामकसाओ ढवणकसाओ दव्वकसाओ पच्चयकसाओ समुप्पत्तिकसाओ आदेशकसाओ रसकसाओ भावकसाओ चेदि। वही, पृ० २८३ ।
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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