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________________ जैन साहित्यका विस्तार : ३ नही किया था । तत्त्वज्ञान, आचार, लोकविभाग आदि सभी विपयोपर उनकी वाणी प्रवाहित हुई थी । उनमेंसे अनेक विपयोके सम्वन्धमे उनकी स्वतंत्र और मोलिक देन थी, जो जैन तत्त्वज्ञानकी अपनी विशेषता कहलाती है। उनके पश्चात् उनके अनुयायी शिष्यो और प्रशिष्योने टीकाओ और मोलिक रचनाओके रूपमें उनके सिद्धान्तोको निवद्ध करके जैन साहित्यके भण्डारको बरावर समृद्ध किया । यद्यपि भगवान् महावीरने तत्कालीन लोकभापा अर्धमागधी को अपने उपदेशोका माध्यम बनाया था, और इस तरह गोतम गणधरके द्वारा ग्रथित द्वादशाग श्रुतकी भाषा भी अर्धमागधी थी । किन्तु उनका लोप होने पर भी महाराष्ट्री और शौरसेनी भाषाएं, जो प्राकृतके ही भेद है, जैन आगमिक साहित्यकी रचनाका माध्यम रही । और जव संस्कृतभापा लोकप्रिय हुई तो जैनाचार्योंने उसके भण्डार - को अपनी कृतियोंसे भरा । पीछे अपभ्रंश भाषाका प्रचार होनेपर अपभ्रंश भाषाको अपनाकर उसे समृद्ध बनाया । अपभ्रंश भापा तो एक तरहसे जैन ग्रन्थकारोकी कृतियोसे ही समृद्ध हुई थी । इसलिये डाक्टर विन्टरनीट्सने' लिखा था कि "भारतीय भाषाओके इतिहासकी दृष्टिसे भी जैनोका साहित्य बहुत महत्वपूर्ण हैं, क्योकि जैनोने सदा इस वातका ध्यान रखा है कि उनकी रचनाएँ अधिक-से-अधिक जनता के लिये उपयोगी हो । इसीसे आगमिक रचनाएँ और प्राचीनतम टीकाएँ तथा विद्वत्तापूर्ण ग्रन्थ और काव्य लिखना शुरू किये । कुछ ग्रन्थकारोने सरल सस्कृतमे रचनाएँ की, तो कुछने काव्यशैलीमें परिश्रमसाध्य सस्कृतभापाको अपना कर प्राचीन संस्कृत-कवियोसे टक्कर ली । " । अन्तमें, काफी आधुनिक कालमें जैनोने विभिन्न आधुनिक भारतीय भाषाओका भी उपयोग किया और उन्होने खामतौरसे हिन्दी ओर गुजराती भाषाको समृद्ध बनाया)।१४ १. हि० इ० लि०, भा० २, पृ० ४२७ । २ जैन साहित्यकी तालिकाके लिये देखिये - आर० जी० भण्डारकरकी रिपोर्ट १८८३-८४, ९ पिटर्सनकी रिपोर्ट ४, और ५, ए० बी० कीथक्री 'बोटलियन' ( Bodlian ) लाइवेरीके प्राकृत ग्रन्थोंकी सूची, मध्यप्रदेश और वरारकी सरकारी आज्ञासे प्रकाशित सस्कृत और प्राकृत ग्रन्थोंकी सूची ( नागपुर १९२६), रायल एशियाटिक सोसायटी बम्बई शाखाकी लायब्रेरीके सस्कृत प्राकृत ग्रन्थकी वर्णनात्मक सूची जिल्द ३,४ । इण्डिया आफ्रिके संस्कृत-प्राकृत ग्रन्थकी सूची, जिल्द २ । जिनरत्नकोश, पूना । जैन सिद्धान्त भवन आराकी सूची, भा० ज्ञानपीठ काशीसे प्रकाशित कन्नड प्रान्तीय ग्रंथसूची | राजस्थानके ( जैन मण्डारोंकी ग्रन्थसूची छह भाग । ऐलक पन्नलाल सरस्वती भवन बम्बईकी ग्रन्थसूची, तथा पाटन और जैसलमेरके भण्डारोंकी सूचियाँ, तथा अन्य सूचियाँ । 1 I
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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