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________________ द्वितीय अध्याय चूर्णिसूत्र साहित्य दिगम्बर परम्परामें मूल सिद्धान्त ग्रन्थोके कुछ ही समय पश्चात् चूर्णिसूत्र साहित्य लिखा गया है । इस साहित्य विधाका उद्गम कब और कैसे हुआ यह तो निश्चित रूपसे नही कहा जा सकता पर 'कसायपाहुड' पर यतिवृपभके जो चूर्णि सूत्र उपलब्ध है, उनके अध्ययनसे यह अनुमान होता है कि इतने प्रोढ सूत्र एकाएक नही लिखे जा सकते है । अवश्य कोई पूर्ववर्ती परम्परा रही होगी, जो अनवच्छिन्न कालके प्रवाहमे आज उपलब्ध नही है । मूल सिद्धान्त ग्रन्थो और चूर्णि सूत्रोके तुलनात्मक अध्ययनसे इतना अवश्य प्रकट होता है कि चूर्णिसूत्र सिद्धान्त ग्रन्थोके पश्चात् और अन्य भाष्य एव विवृत्तियोके पूर्वमें रचे गये होगे । यहाँ यह स्मरणीय है कि दिगम्बर परम्पराका 'चूर्णिसूत्र साहित्य' श्वेताम्बर - परम्पराके 'चूर्णि साहित्य' से स्थापत्य और वर्ण्य - विषय दोनो ही दृष्टियोसे भिन्न है । श्वेताम्बर परम्पराकी चूर्णियाँ गद्यात्मक और पद्यात्मक मिश्रित शैलीमें लिखी गयी है । इनकी भाषा भी सस्कृत मिश्रित प्राकृत है तथा कतिपय चूर्णियाँ प्राकृतमे भी उपलब्ध है । इन चूर्णियोकी शैली - की एक प्रमुख विशेषता आख्यानात्मक उदाहरणो द्वारा विषयके स्पष्टीकरणकी है | चूर्णिकार अपनी ओरसे कोई सिद्धान्तात्मक नये तथ्य अकित नही करता, अपितु नियुक्तियो और भाष्यो द्वारा विवृत तथ्योकी ही पुष्टि करता है । पर दिगम्बर परम्पराके चूर्णि सूत्रोंमें आगम सम्बन्धी नये तथ्योकी प्रचुरता है । बीज पदरूप गाथा सूत्रो पर ये 'चूर्णिसूत्र' वृत्तिका कार्य करते हुए भी अनेक नये तथ्यो को सूत्र रूपमें प्रस्तुत करते है । यही कारण है कि जयधवलाकारने चूर्णि सूत्रोके भी व्याख्यान लिखे है । बताया जाता है कि 'कसायपाहुड' की गाथाओका सम्यक् अर्थ अवधारण कर उन पर वृत्ति सूत्र लिखे गये है । ये वृत्ति सूत्र ही चूर्णिसूत्र कहे जाते है । 'जयधवला' में वृत्ति सूत्रका लक्षण निम्न प्रकार बताया है 'सुत्तस्सेब विवरणाए सखित्तसद्दरयणाए सगहियसुत्तासेसत्याए वित्तिसुत्तववएसादो ।" १. जयधवला अ० प० ५२ ।
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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