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________________ १३८ जनसाहित्यका इतिहास भेदसे उत्पन्न होती है, कोन वर्गणा सघातसे उत्पन्न होती है और कौन वर्गणा भेद और सघात दोनोसे उत्पन्न होती है। स्कन्धोका विभाग होनेको भेद कहते है। और परमाणुपुद्गलोके सम्मिलनका नाम सघात है । तथा भेदपूर्वक होनेवाले राघातको भेदसघात कहते है । परमाणुद्रव्यवर्गणा तो द्विप्रदेशी आदि ऊपरको वर्गणामोके भेदगे ही उत्पन्न होती है । शेप वर्गणाएँ भेदसे, राघातरो और भेदसघातगे उत्पन्न होती है । अर्थात् अपनेसे नीचेकी वर्गणाओके सघातसे और ऊपरकी वर्गणाओके भेदसे तथा स्वस्थान की अपेक्षा भेद-सघातरो उत्पन्न होती है । ___ उक्त वर्गणाओका कथन करनेके पश्चात् सूत्रकार भूतवलिने वहा है 'अव इस बाह्यवर्गणाकी अन्य प्ररूपणा करनी चाहिये ॥११७।। इसके विषयमे ये चार अनुयोगद्वार ज्ञातव्य है-शरीरिशरीरप्रस्पणा, गरीरप्रस्पणा, गरीरविस्रसोपचयप्ररूपणा और विनसोपचयप्ररूपणा ॥११८॥' धवलाटीकामे बतलाया है कि पांचो शरीरोकी वाद्यवर्गणा सज्ञा है। अत सूत्रकारने उक्त चार अनुयागोके द्वारा उनका विशेप कथन किया है। सबसे प्रथम शरीरिशरीरप्ररूपणावा कथन करते हुए कहा कि 'जीव प्रत्येकगरीरवाले और साधारणशरीरवाले होते है ।।११९॥ साधारणगरीरनाले जीव नियमसे वनस्पतिकायिक होते है । और शेप जीव प्रत्येकाशरीरी होते, है ॥१२०॥ आगे सात गाथाओसे साधारणशरीरवाले जीवोका कथन किया है। उनके प्रारम्भका सूत्र इस प्रकार है-'तत्थ इम साहारणलक्खण भणिद ॥१२१॥' 'वहाँ साधारणका यह लक्षण कहा है। इससे स्पष्ट है कि साधारणका कथन करनेवाली गाथा या गाथाएँ प्राचीन है । और अपने स्थलसे 'सभवतया' महाकर्मप्रकृतिप्राभृतके बन्धनमनुयोगद्वारसे ही उठाकर यहाँ रखी गई है। यहां हम उन सातो गाथाओको अर्थके साथ देते है "साहारणमाहारो साहारणमाणपाणगहण च । साहारणजीवाण साहारणलक्खण भणिद ॥१२२॥" साधारण आहार, साधारण उछ्वास-निश्वासका ग्रहण, यह साधारणकायवाले जीवोका साधारणलक्षण कहा है। 'एयस्स' अणुग्गहण वहूण साहारणाणमेयस्स । एयस्स ज बहूण समासदो त पि होदि एयस्स ॥१२३॥' एक जीवका जो अनुग्रहण (पर्याप्तियोके योग्य पुद्गल परमाणुओका ग्रहण 'इक्कस्स उ ज गहण बहूण साहारणाण त चेव । ज बहुयाण गहण समासओ त पि इक्कस्स ॥९६||--प्रज्ञा० १ पद ।
SR No.010294
Book TitleJain Sahitya ka Itihas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages509
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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