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________________ जैनसाहित्य और इतिहास हाल नई हिन्दी टीकाके कर्ता पं० जिनदासजी शास्त्रीका भी है । संस्कृतटीकाकार पं० आशाधरजीने तो इस गाथाकी विशेष टीका इसलिए नहीं की है कि वह सुगम है परन्तु आचार्य अमितगतिने इसका संस्कृतानुवाद करना क्यों छोड़ दिया ? वे मेतार्यके आख्यानसे परिचित नहीं थे, शायद इसी कारण । मेतार्यमुनिकी कथा श्वेताम्बर सम्प्रदायमें बहुत प्रसिद्ध है । वे एक चाण्डालिनीके लड़के थे परन्तु किसी सेठके घर पले थे । अत्यन्त दयाशील थे। एक दिन वे एक सुनारके यहाँ भिशाके लिए गये । उसने अपनी दूकानमें उसी समय सोनेके जौ बनाकर रक्खे थे । वह भिक्षा लानेके लिए भीतर गया और मुनि वहीं दूकानमें खड़े रहे जहाँ जौ रक्खे थे। इतनेमें एक क्रौंच ( सारस ) पक्षीने आकर वे जौ चुग लिये । सुनारको सन्देह हुआ कि मुनिने ही जौ चुरा लिये हैं। मुनिने पक्षीको चुगते तो देख लिया था परन्तु इस भयसे नहीं कहा कि यदि सच बात मालूम हो जायगी तो सुनार सारसको मार डालेगा और उसके पेट से अपने जौ निकाल लेगा। इससे सुनारको सन्देह हो गया कि यह काम मुनिका ही है, इसने ही जौ चुराये हैं। उसने उन्हें बहुत कष्ट दिया और अन्तमें भीगे चमड़ेमें कस दिया। इससे उनका शरीरान्त हो गया और उन्होंने केवल ज्ञान प्राप्त किया। मेरी समझमें इस ढंगकी कथा दिगम्बर सम्प्रदायमें नहीं है। ७ दश स्थितिकल्पोंके नामवाली गाथा जिसकी टीकापर अपराजितसूरिको यापनीय संघ सिद्ध किया गया है, जीतकल्प-भाष्यकी १९७२ नं० की गाथा है । श्वेताम्बर सम्प्रदायकी अन्य टीकाओं और नियुक्तियों में भी यह मिलती है और आचार्य प्रभाचन्द्रने अपने प्रमेयकमलमार्तण्डके स्त्री-मुक्ति-विचार ( नया एडीशन पृ० १३१) प्रकरणमें इसका उल्लेख श्वेताम्बर सिद्धान्तके रूपमें ही किया है. “नाचालेक्यं नेष्यते ( अपि ईष्यतेव ) ' आचेलक्कुद्देसिय-सेज्जाहर-रायपिंडकियिकम्मे' इत्यादेः पुरुषं प्रति दशविधस्य स्थितिकल्पस्य मध्ये तदुपदेशात् ।” आराधनाकी ६६५ और ६६६ नम्बरकी गाथायें भी दिगम्बर सम्प्रदायके १-देवो आवश्यक-नियुक्ति गाथा ८६७-७०। २-चाण्डालिनीके लड़केका मुनि होना भी शायद दिगम्बर-सम्प्रदायके अनुकूल नहीं है । ३-चतारिजणा भत्तं (पाणय) उवकप्पंति अगिलाणए पाउग्गं । छंडियमवगददोस अमाइणो लद्धिसंपणा ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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