SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यापनीय साहित्यकी खोज ५७ अपराजितसूरिकी परम्पराके समान यह परम्परा भी दिगम्बर सम्प्रदायकी किसी पट्टावली या गुर्वावली आदिमें नहीं मिलती। इस धारणाके सही होनेका भी कोई पुष्ट और निभ्रान्त प्रमाण अभी तक नहीं मिला है कि शिवकोटि और शिवार्य एक ही हैं जो स्वामि समन्तभद्रके शिष्य थे, जो कुछ प्रमाण इस सम्बन्धमें दिये जाते हैं, वे बहुत पीछेके गढ़े हुए मालूम होते हैं। स्वयं शिवार्य ही यह स्वीकार नहीं करते कि मैं समन्तभद्रका शिष्य हूँ । २ अपराजितसूरि यदि यापनीय संघके थे तो अधिक सम्भावना यही है कि उन्होंने अपने ही सम्प्रदायके ग्रन्थकी टीका की होगी। ३ आराधनाकी गाथायें काफी तादादमें श्वेताम्बर सूत्रोंमें मिलती हैं, इससे शिवायके इस कथनकी पुष्टि होती है कि पूर्वाचार्योंकी रची हुई गाथायें उनकी उपजीव्य हैं। ____ ४ जिन तीन गुरुओंके चरणों में बैठकर उन्होंने आराधना रची है, उनमें से 'सर्वगुप्त गणि' शायद वही हैं, जिनके विषयमें शाकटायनकी अमोघवृत्तिमें लिखा है कि “ उपसर्वगुप्तं व्याख्यातारः।” १-३-१०४ । अर्थात् सारे व्याख्याता या टीकाकार सर्वगुप्तसे नीचे हैं । चूंकि शाकटायन यापनीय संघके थे इसलिए विशेष सम्भव यही है कि सर्वगुप्त यापनीय संघके ही सूत्रों या आगोंके व्याख्याता हो। ५ शिवार्यने अपनेको 'पाणितलभोजी' अर्थात् हाथोंमें ग्रास लेकर भोजन करनेवाला कहा है। यह विशेषण उन्होंने अपनेको श्वेताम्बर सम्प्रदायसे अलग प्रकट करनेके लिए दिया है । यापनीय साधु हाथपर ही भोजन करते थे। ६ आराधनाकी ११३२ वीं गाथामें 'मेदस्स मुण्णिस्स अक्खाणं' ( मेतार्यमुनेराख्यानम् ) अर्थात् मेतार्य मुनिकी कथाका उल्लेख किया गया है । पं० सदासुखजीने अपनी वचनिकामें इस पदका अर्थ ही नहीं किया है। यही १-देखो . आराधना और उसकी टीकायें ' शीर्षक लेख । । २-अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालामें प्रकाशित भगवती आराधना वचनिकाके अन्तमें उन गाथाओंकी एक सूची दी है जो मूलाचार और आराधनामें एक-सी हैं और पं० सुखलालजीद्वारा सम्पादित · पंच प्रतिक्रमण सूत्र में मूलाचारकी उन गाथाओंकी सूची दी है जो भद्रबाहुकृत ' आवश्यकनियुक्ति में भी है।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy