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________________ यापनीय साहित्यकी खोज जिसका उल्लेख कई शिलालेखों में मिलता है और यह एक मार्केकी बात है कि देवसेनसूरिने यापनीयके समान द्रविड़ संघको भी जैनाभासोंमें गिना है। प्रायः प्रत्येक संघमें गण, गच्छ, अन्वय, बलि आदि शाखायें रहती थीं। कभी कभी गण-गच्छादिको संघ और संघोंको गण या गच्छ भी लिख दिया जाता था । मतलब सबका मुनियोंके एक समूहसे था। संघों और गणोंके नामोंकी उपपत्ति इन संघों या गणोंसे कुछके नाम देशोंके नामसे जैसे द्रविड़, माथुर, लाड़बागड़ आदि, कुछ ग्रामोंके नामसे जैसे कित्तूर, नमिलूरे, तगरिले, श्रीपुर, हनसोगे” आदि, और कुछ दूसरे चिह्नोंसे रक्खे गये हैं। इन्द्रनन्दिने श्रुतावतारमें लिखा है कि जो मुनि शाल्मलिवृक्षमूलसे आये उनका अमुक नाम पड़ा, जो अशोकवाटिकासे आये उनका अमुक । इस विषयमें जो मत-भेद हैं उनका भी उन्होंने उल्लेख कर दिया है । यद्यपि वृक्षोंसे नामों की कोई ठीक उपपत्ति नहीं बैठती है फिर भी यह माननेमें कोई हर्ज नहीं कि शुरू शुरूमें कुछ संघों या गणोंके नाम वृक्षोंपरसे भी पड़े थे। ये पुन्नागवृक्षमूलगण और श्रीमूलमूलगण भी इसी तरहके मालूम होते हैं । पुनाग नागकेसरको कहते हैं और श्रीमूल शाल्मलि या सेमरको । बंगला भाषामें १-श्रीमद्रमिलसंघेस्मिन्नन्दिसंघेऽस्त्यरुंगलः । अन्वयो भाति योऽशेषशास्त्रवारीशपारगः ॥ ...श्रीमद्रामिणगणदनन्दिसंघदरुङ्गलान्वयदाचार्यावलियेन्ते दोडे... -जैनशिलालेखसंग्रह पृ० ३९७ २-दक्खिणमहुराजादो दाविडसंघो महामोहो।। ३-७- इन नामोंके स्थान कर्नाटकमें अब भी हैं। बलि, गच्छ और अन्वयके नाम इन्हींपरसे रक्खे गये हैं । गित्तूर और कित्तूर एक ही हैं। कित्तूरका पुराना नाम कीर्तिपुर है जो पुन्नाट देशकी राजधानी था । ' एरे' कनडी में 'बडे ' को कहते हैं । कित्तर और ' एरे गित्तर ' दोनों ही नामके गण या गच्छ हैं। ८-ये शाल्मलिमहाद्रुममूलाद्यतयोऽभ्युपगताः, ये खण्डकेसरद्रुममूलान्मुनयः समागताः प्रथितादशोकवाटात्समागता ये मुनीश्वराः इत्यादि ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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