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________________ जैनसाहित्य और इतिहास नामक गण और मूलिकल गच्छका बतलाया है। हमारा खयाल है कि जिस तरह मूल संघके अन्तर्गत एक नन्दिसंघ है, उसी तरह यापनीय संघके अन्तर्गत भी एक नन्दिसंघ था । इसके प्रमाणमें हम राष्ट्रकूटनरेश द्वि० प्रभूतर्वषेक एक दीन-पत्रको पेश कर सकते हैं, जिसके द्वारा शक ७३५ ( वि० सं० ८७० ) को यापनीय-नन्दिसंघके विजयकीर्तिके शिष्य अर्ककीर्ति मुनिको मान्यपुरके ( मैसूर राज्यके नेल मंगल ताल्लुकेके मौने नामक ग्रामके) शिलाग्राम जिनेन्द्रभवनको एक गाँव भेंट किया गया था। उसमें स्पष्टतासे 'श्रीयापनीय-नन्दिसंघ पुनागवृक्षमूलगण' लिखा हुआ है । इस नन्दिसंघके अन्तर्गत उसकी शाखारूप पुनागवृक्षमूल नामका गण था। जिस तरह मूलसंघके अन्तर्गत, देशीय, काणूर आदि गण हैं, उसी तरह यापनीय नन्दिसंघ यह भी था। रायबार्गके शिलालेखमें जो ई० स० १०२० का लिखा हुआ है, यापनीयसंघ-पुन्नागवृक्षमूलगणके कुमारकीर्तिदेवको कुछ दान दिया गया है । इसी तरह कोल्हापुरके ' मंगलवारबस्ति' नामक जैनमन्दिरकी एक प्रतिमाके नीचे भी एक शिलालेख है जिससे मालूम होता है कि पुन्नागवृक्षमूलगण-यापनीयसंघके विजयकीर्ति पण्डितके शिष्य और रविण्णके भाई वोमिण्णने उसकी प्रतिष्ठा कराई थी। इन दो लेखोंमें यापनीयसंघ पुन्नागवृक्षमूलगणका उल्लेख तो है परन्तु नन्दि. संघका नहीं है, फिर भी यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि नन्दिसंघ यापनीयोंमें भी था और उसके अन्तर्गत पुन्नागवृक्षमूल गण था । द्रविड संघमें भी नन्दिसंघ यापनीय संघ ही नहीं द्रविड़ या द्रमिल संघमें भी नन्दिसंघ नामका संघ था, १-इं० ए० जिल्द १२, पृ० १३-१६ ... श्रीयापनीयनन्दिसंघ'नागवृक्षमूलगणे श्रीकीर्त्याचार्यान्वये ...। २-जर्नल आफ दि बाम्बे हिस्टारिकल सुसाइटी जिल्द ३, पृष्ठ० १६२-२०० ३- प्रो० के० जी० कुंडनगरने कनड़ी मासिक पत्र । जिनविजय ' ( सन १९३२ ) में यह और यापनीयोंके अन्य लेख प्रकाशित किये थे । इनका उल्लेख प्रो० उपाध्यायने अपने ' यापनीय संघ ' शीर्षक लेखमें किया है । देखो जैनदर्शन वर्ष ४, अंक ७ ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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