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________________ जैन साहित्य और इतिहास प्यारे श्रीदेवकीर्ति पण्डितको भेंट दी थी। इस प्रतिके लिखे जानेका समय नहीं दिया है । इस प्रतिपरसे जो दूसरी प्रति लिखी गई, वह रत्नकीर्ति भट्टारकके पट्टशिष्य श्रीप्रभाचन्द्रदेवके शिष्य ब्रह्मचारी नाथूरामने संवत् १४१६ की चैत सुदी ५ सोमवारको अपने पढ़नेके लिए दिल्लीमें लिखाई, जिस समय कि बादशाह फीरोज़शाह तुग़लकका राज्य था। इस दूसरी प्रतिपरसे तीसरी प्रति अग्रोतक या अग्रवालवंशके नयपाल साहूके पुत्र कुलधर, गोहिलगोत्री साहू खेतल और साहू राजाके पुत्र वीरपालने लिखाई । किस समयमें लिखाई गई, यह नहीं लिखा है । यह पद्धति बहुत ही अच्छी है। इस प्रकार यदि ग्रन्थ-लेखक (लिपिकर्ता ) अपने पहलेकी मातृका प्रतियोंकी लेखक-प्रशस्तियाँ भी पूरी लिख दिया करें, तो बहुत लाभ हो । परन्तु तिथि और संवत् भी लिखना न छोड़ना चाहिए । __ दूसरे लिपिक ने अपना संवत् १४१६ दिया है और उसने वह प्रति अपनेसे पहलेकी प्रति परसे की है। इससे टीकाके निर्माण-कालके विषयमें इतनी बात निश्चयपूर्वक कही जा सकती है कि यह टीका चौदहवीं शताब्दिके बादकी नहीं है। ४-भावार्थ-दीपिका टीका-यह टीका भी पूनेके भाण्डारकर-प्राच्यविद्या-संशोधक मन्दिरमें है' । इसका प्रारंभका और अन्तका अंश इस प्रकार है-- श्रीमन्तं जिनदेवं वीरं नत्वामरार्चितं भक्त्या । वृत्तिं भगवत्याराधनासुग्रन्थस्य कुर्वेऽहम् ॥ १॥ घनघटितकर्मनाशं गुरुं च वंशाधिपं च कुन्दाह्र । वंदे शिरसा तरसा ग्रन्थसमाप्तिं समीप्सुरहम् ॥ २ ॥ वाग्देवीं श्रीजैनी नत्वा संप्रार्थ्य ग्रंथसंसिद्धिं । सरलां मुग्धां विरचे वृत्तिं भावार्थदीपिकासंज्ञां ॥३॥ कृतेयं सद्वत्तिः शिवजिदरुणाख्येन विदुषा, गुणानां सत् व्यातिय॑पहृतसमस्ताघनिकरा।। प्रवक्तुः श्रोतुर्या वितरति दिवं मुक्तिमपरां, चिरं जीयादेषा बुधजनमनोरंजनकरी॥ १ नं० १११३ आफ १८९५-९६ ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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