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________________ आराधना और उसकी टीकायें mm इसके सिवाय उनके सामने भगवती आराधनाका एक और भी कोई पद्यानुवाद था जिसके सौसे ऊपर पद्य उन्होंने अपनी टीकामें उद्धत किये हैं। जान पड़ता है इसी लिए अपनी टीकाका नाम उन्होंने मूलाराधना-दर्पण रक्खा है । कोई यह न समझ ले कि यह किसी संस्कृत आराधनाकी टीका है। ३ आराधना-पञ्जिका-पूनेके भाण्डारकर-प्राच्यविद्यासंशोधक-मन्दिरमें इसकी एक प्रति है' । १५-१६ वर्ष पहले मैंने इसे देखा था और इसके अन्तकी लेखक-प्रशस्तिको नकल कर लिया था, जो इस प्रकार हैकुन्दावदातयशसा सहवासिवंशपद्माकरद्युमणिना गुणिनां वरेण । श्रीदेवकीर्तिविबुधाय बुधप्रियाय दत्तं यशोधवलनामधुरंधरेण ॥ श्रीदेवकीर्तिपण्डितच्छात्रेण काहत्याकनाम्ना लिखितमिति । संवत् १४१६ वर्षे चैत्रसुदिपञ्चम्यां सोमवासरे सकलराजशिरोमुकुटमाणिक्यमरीचिपिंजरीकृतचरणकमलपादपीठस्य श्रीपेरोजसाहेः सकलसाम्राज्यधुरीबिभ्राणस्य समये श्रीदिल्ल्यां श्रीकुन्दकुन्दचार्यान्वये सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे भट्टारकथीरत्नकीर्तिदेवपट्टोदयाद्रितरुणतरणित्वमुर्तीकुर्वाणं भट्टारकश्रीप्रभाचन्द्रदेव-तत्सिष्याणां ब्रह्म नाथूराम । इत्याराधनापंजिकायां ( ? ) ग्रन्थ आत्मपठनार्थ लिखापितम् । शुभस्तु मंगलमहाश्रीः। समस्तसंघस्य शुभम्। __ अग्रोतकान्वये साधु नयपाल तत्पुत्र कुलधरः तथा गोहिलगोत्र साधु खेतल साधु राजा. तस्य पुत्र वीरपाल लिखापितम् । इसके न तो मंगलाचरणादि प्रारंभिक अंशको मैं नोट कर सका और न टीकाकर्ताके अन्तिम उल्लेखको, जिससे यह बतलाया जा सकता कि इसके कर्ता कौन हैं । मेरा अनुमान है कि शायद यह पंजिका प्रमेयकमलमार्तण्ड आदिके कर्ता आचार्य प्रभाचन्द्रकी हो। उनके ग्रन्थों की सूचीमें एक आराधना-पंजिकाका उल्लेख है। पूर्वोक्त प्रशस्तिसे तो इस टीकाके लिखने लिखानेवालोंका ही पता लगता हैं । यह एक विचित्र बात है कि इसमें तीन बारके लिपिकारोंका उल्लेख सुरक्षित है। इसकी एक प्रति श्रीदेवकीर्ति पण्डितके विद्यार्थी काहत्याकने लिखी थी और सहवासीवंशके यशोधवल नामक धुरंधर या पण्डितने बुद्धिमानोंके १ नं० ६७९ आफ १८९५-९६,९८-९९
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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