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________________ ५४४ जैनसाहित्य और इतिहास लेनेमें संकोच करती हैं और इस तरह उनके नाममें भी पतिके नामका उच्चारण हो जाता है, शायद इसी लिए इस सुन्दर पद्धतिका विस्तार नहीं हुआ और यह बन्द हो गई। ४-साधुओंका वहुपत्नीत्व हमारे भंडारोंमें जो हस्तलिखित ग्रन्थ हैं, उनके अन्तमें ग्रंथकर्ताओंकी प्रशस्तियोंके सिवाय ग्रन्थ लिखानेवालों और उन्हें 'ज्ञानावरणी-कर्मक्षयार्थ' दान करनेवालोंकी भी प्रशस्तियाँ रहती हैं । इनमें प्रायः उनके सारे कुटुम्बके नाम रहते हैं । उनमें ऐसे बहुतसे संघपतियों या साधुओं (साहुओं) के नाम मिलते हैं जिनके एकाधिक स्त्रियाँ होती थीं। उनकी प्रथमा, द्वितीया, तृतीया भार्याओंके नाम और उनके पुत्रोंके नाम भी रहते हैं। इससे पता लगता है कि उस समय धनी प्रतिष्ठित कुलोंमें बहुपत्नीत्वका आम रिवाज था और वह शायद प्रतिष्ठाका ज्ञापक था। कमसे कम अप्रतिष्ठाका कारण तो नहीं समझा जाता था। उदाहरणके लिए हम यहाँपर केवल पं० राजमल्लजीकी वि० सं० १६४१ में बनी हुई लाटीसंहिताकी विस्तृत प्रशस्तिका कुछ अंश उद्धृत कर देना काफी समझते हैं तत्रत्यः श्रावको भारू भार्या तिस्रोऽस्य धार्मिकाः । कुलशीलवयोरूपधर्मबुद्धिसमन्विताः ॥ १० ॥ नाम्ना तत्रादिमा मेधी द्वितीया नाम रूपिणी । रत्नगी धरित्रीव तृतीया नाम देविला ॥ ११ ॥ अर्थात् भारू नाम श्रावककी मेघी, रूपिणी और देविला नामकी तीन स्त्रियाँ थीं। आगे चलकर भारूके नाती न्योताके विषयमें लिखा है। न्योतासंघाधिनाथस्य द्वे भार्ये शुद्धवंशजे ।। १५ ।। ___ आद्या नाम्ना हि पद्माही गौराही द्वितीया मता। अर्थात् संघपति न्योताकी पद्माही और गौगही नामकी दो स्त्रियाँ थीं। न्योताके पुत्र देईदासके भी दो भार्यों थीं-एक रामूही और दूसरी कामूही भार्या देईदासस्य रामूही प्रथमा मता ॥ १९ ॥ कामूही द्वितीया ज्ञेया भर्तृश्छन्दानुगामिनी । इसी वंशमें आगे संघपति भोल्हाकी भी छाजाही, वीधूही आदि तीन और सं० फामणकी डूगरही और गंगा ये दो स्त्रियाँ बतलाई हैं।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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