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________________ कुछ अप्राप्य ग्रन्थ १-सुमतिदेवके दो ग्रन्थ पार्श्वनाथचरितके की वादिराजसूरिने प्राचीन कवियोंका स्मरण करते हुए लिखा है नमः सन्मतये तस्मै भवकूपनिपातिनाम् । ___ सन्मतिर्विवृता येन सुखधामप्रवेशिनी ॥ २२ ॥ अर्थात् उस सन्मति ( आचार्य) को नमस्कार हो, जिसने भवकूपमें पड़े हुए लोगोंके लिए सुखधाममें पहुँचानेवाली 'सन्मति'को विवृत किया, अर्थात् सन्म. तिकी वृत्ति या टीका लिखी। हमारी समझमें यह सन्मति सिद्धसेन आचार्यका सुप्रसिद्ध ' सन्मति-प्रकरण' नामका ग्रन्थ है, जिसपर श्वेताम्बराचार्य अभयदेवकी विस्तृत टीका है और जो गुजरात विद्यापीठद्वारा प्रकाशित भी हो चुका है। इस उल्लेखसे अनुमान होता है कि दिगम्बरसम्प्रदायमें उस समय तक इसका इतना प्रचार था कि उसपर दिगम्बराचार्योंने टीकायें भी लिखी थीं। इसी लिए तो हरिवंशपुराण और आदिपुराणके कर्ताओंने उनकी अतिशय प्रशंसा की है और उन्हें महान् तार्किक बतलाया है। श्रवणबेल्गोलकी मल्लिषण-प्रशस्तिमें सुमतिदेव नामके आचार्यका उल्लेख है जिन्होंने 'सुमति-सप्तक ' नामका कोई ग्रन्थ बनाया था सुमतिदेवममुं स्तुत येन वः सुमतिसप्तकमाप्ततया कृतं । परिहृतापथतत्त्वपथार्थिनां सुमतिकोटिविवर्ति भवार्तिहृत् ।। १ - जगत्प्रबोधसिद्धस्य वृषभस्येव निस्तुषः । बोधयन्ति सतां बुद्धिं सिद्धसेनस्य सूक्तयः ।। ३०-हरि ० २-सिद्धसेनकवि याद्विकल्पनखराङ्करः ।। प्रवादिकरियूथानां केसरी नयकेसरः । ४२-आ० पु०
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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