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________________ तीन महान् ग्रन्थकर्ता ५१९ विस्तार किया । इससे मालूम होता है कि यह राजा विद्वानोंका विशेष करके जैनाचार्योंका बड़ा भारी आश्रयदाता था । जैनमुनियों के लिए भी उसने कई दान किये थे। __ अकालवर्ष-यह अमोघवर्षका पुत्र था और कृष्णराज (द्वितीय) के नामसे प्रसिद्ध है । यह भी बड़ा प्रतापी था। इसने गुर्जर (प्रतिहार ) और गौड़ राजाओंसे युद्ध किया और (गुजरात) के राष्ट्रकूट राज्य ( शाखा ) को छीनकर अपने राज्यमें मिला लिया। इसके पास हाथियोंकी बड़ी भारी सेना थी। उत्तरपुराणकी प्रशस्तिके अनुसार इसके हाथियोंने अपने मद-जलसे गंगाका पानी भी कडुवा कर डाला थो । अर्थात् इसका राज्य उत्तरमें गंगातट तक पहुँच गया था । उत्तरपुराणकी दूसरी प्रशस्ति जिस समय अर्थात् श० सं० ८२० में लिखी गई उस समय यही सम्राट् था। यह श० सं० ७९७ के लगभग सिंहासनपर बैठा और ८३३ के लगभग इसका देहान्त हुआ। लोकादित्य-यह अकालवर्ष या कृष्ण ( तृतीय ) का सामन्त और वनवास देशका राजा था। इसके पिताका नाम बंकेयरस या बंकराज था । यह चेल्लध्वज था । अर्थात् इसकी ध्वजापर चिल या चीलका चिह्न था। इसके पिता और भाई भी चेलध्वज थे । गुणभद्र ने इसे जैनधर्मकी वृद्धि करनेवाला और महान् यशस्वी कहा है । इसीके राज्यकालमें बंकापुरमें ही महापुराणकी पूजा की गई थी। क्या अमोघवर्ष जैन थे ? यह एक विवादग्रस्त विषय है कि महाराजा अमोघवर्ष जैन थे या नहीं, अर्थात् उन्होंने वास्तवमें जैनधर्म धारण कर लिया था या जैनधर्मके प्रति उनकी केवल सहानुभूति-भर थी ? गुणभद्रने लिखा है कि जिनके चरणोंमें राजा १ यस्योत्तुंगमतंगजा निजमदस्रोतास्विनीसंगमाद् । गाङ्गं वारि कलंकित कटु मुहुः पीत्वाप्यगच्छत्तुषः ॥...२९ - उत्तर पु. २ अकालवर्षभूपाले पालयत्यखिलामिलाम् । इत्यादि -उ० पु० ३ देखो पृ० की टिप्पणीका उद्धरण । ४ चेल्लपताके चेल्लध्वजानुजे चेल्लकेतनतनूजे । जैनेन्द्रधर्मवृद्धिविधायिनि स्वविधुवीध्रपृथुयशसि...॥ ३३
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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