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________________ ५१८ जैनसाहित्य और इतिहास श० सं० ७३५ में जब धवलाकी समाप्ति हुई तब ये ही राजा थे और श० स० ७७० के लगभग जब जिनसेनने आदिपुराणको अधूरा छोड़कर स्वर्गवास किया तब भी इन्हींका राज्य था। श० सं० ७८२ के ताम्रपत्रसे मालूम होता है कि इन्होंने स्वयं मान्यखेटमें जैनाचार्य देवेन्द्रको दान दिया था । यह दानपत्र इनके राज्यके ५२ वें वर्षका है । इसके बाद श० संवत् ७९९ का एक लेख कन्हेरीकी एक गुफामें मिला है जिसमें इनका और इनके सामन्त कपर्दी द्वितीयका उल्लेख है । परन्तु ऐसा मालूम होता है कि इससे कुछ पहले ही अमोघवर्षने अपने पुत्र अकालवर्ष या कृष्ण द्वितीयको राज्यकार्य सौंप दिया था । क्योंकि श० सं० ७९७ का एक लेख कृष्ण द्वितीयके महा सामन्त पृथ्वीरायका मिला है जिसमें उसके द्वारा सौन्दत्तिके एक जैनमन्दिरके लिए कुछ भूमि दान किये जानेका उलेख है । अपने पिताके समान अमोघवर्षने भी पिछली उम्रमें राज्य त्याग दिया था। इसका उल्लेख उन्होंने अपनी प्रश्नोत्तररत्नमाला नामकी पुस्तकमें भी किया है । लिखा है कि जिसने विवेकपूर्वक राज्य छोड़ दिया उस राजा अमोघवर्षने इसकी रचना की । इन्द्रपुरीकी उपमाको धारण करनेवाली मान्यखेट नगरीको इसीने आबाद किया था और वहाँ अपनी राजधानी कायम की थी। इसके पहले राष्ट्रकुटोंकी राजधानी मयूरखंडी ( नासिकके पास ) में थी। यह राजा स्वयं विद्वान् , कवि और विद्वानोंका आश्रयदाता था । प्रश्नोत्तररत्नमालाके अतिरिक्त 'कविराजमार्ग' नामक अलंकारका ग्रन्थ भी इसीका बनाया हुआ बतलाया जाता है जो कि कनड़ी भाषामें है। शाकटायनने अपने शब्दानुशासनकी टीका अमोघवृत्ति अमोघवर्षके ही नामसे ही बनाई, धवला और जयधवला टीकायें भी उसीके अतिशय धवल या धवल नामके उपलक्ष्यमें बनी और महावीराचार्यने अपने गणितसारसंग्रहमें उसीकी महामहिमाका १ ए. ई० जि० पृ० २९ । २ इ० ए० जि० १३, पृ० १३५ ३ जर्नल बाम्बे ब्रांच रा० ए० सो० जि० १०, पृ० १९४ ४ विवेकात्त्यक्तराज्येन राज्ञेय रत्नमालिका । रचितामोघवर्षेण सुधियां सदलंकृतिः ।। ५ यो मान्यखेटममरेन्द्रपुरोपहासि, गीर्वाणगर्वमिव खर्वयितुं विधत्त ।। --ए० इं० जि० ५, पृ० १९२-९६
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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