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________________ हरिषेणका आराधना-कथाकोश ४३५ दूसरी यह कि उजयिनीके राजा चन्द्रगुप्तने भद्रबाहुके ही समीप दीक्षा ले ली थी और यह चन्द्रगुप्त ही आगे मुनि होनेपर विशाखाचार्य कहलाये जो दशपूर्वके धारियोंमें प्रथम थे । वे सर्व संघके स्वामी हो गये और उन्हींके साथ समस्त संघ गुरुवाक्यके अनुसार दक्षिणापथके पुन्नाट देशमें पहुँची । __ अन्य कथाओं और शिलालेखोंके अनुसार भद्रबाहु आचार्य भी अपने शिष्योंके साथ दक्षिणापथको चले गये थे और उनका स्वर्गवास श्रवणबेलगोलके चन्द्रगिरिपर्वतपर हुआ था । चन्द्रगुप्त उनके साथ ही गये थे और उनका दूसरा नाम विशाखाचार्य नहीं किन्तु प्रभाचन्द्र था । यद्यपि एक विशाखाचार्य नामके आचार्य भी उस संघमें थे, परन्तु वे दूसरे ही थे, चन्द्रगुप्त नहीं । कथाओंका यह विरोध इतिहासज्ञोंके लिए खास तौरसे विचारणीय है। दूसरे कथाकोशोंमें समन्तभद्र, अकलंकदेव और पात्रकेसरीकी जो कथायें दी हैं वे इसमें नहीं हैं । सबसे पहले ये कथायें प्रभाचन्द्र के कथाकोशमें दिखलाई देती हैं और इनका कुछ अस्पष्ट आभास श्रवणबेलगोलकी श० सं० १०५० ( वि० सं० ११८८) की मल्लिपेण प्रशस्तिमें मिलता है । इससे सन्देह होता है कि कहीं इनकी रचना किंवदन्तियों या प्रचलित प्रवादोंके अनुसार ही बादमें न की गई हो। इस ग्रन्थकी प्रशस्तिके आठवें श्लोकमें इसे 'आराधनोद्भुत' बतलाया है। इससे मालूम होता है कि 'आराधना' नामक किसी ग्रन्थमें जो उदाहरणरूप कथायें थीं उन्हें इसमें उद्धृत किया गया है। जैसे कि शिवार्यकी भगवती आराधनामें इस तरहके अनेक उदाहरण संकेत रूपमें जगह जगह दिये गये हैं। डा० ए० एन० उपाध्येका खयाल है कि इस ग्रन्थके कितने एक अंश संभवतः किसी प्राकृत ग्रन्थ परसे संस्कृतमें अनूदित हुए हैं क्यों कि इसमें बहुतसे प्राकृत नाम असावधानीसे प्राकृत ही रह गये हैं जैसे मेदज मुनि । असलमें यह मेतार्यका प्राप्यं भाद्रपदं देशं श्रीमदुजयिनीभवम् । चकाशानशनं धीरः स दिनानि बहून्यलम् ।। ४३ आराधनां समाराध्य विधिना स चतुर्विधाम् । समाधिमरणं प्राप्य भद्रबाहुर्दिवं ययौ ।। ४४ १ उपाध्यायजीके द्वारा यह ग्रन्थ सम्पादित हो रहा है और शीघ्र ही संघी-ग्रन्थमा लामें प्रकाशित होगा। उसकी भूमिका बहुत महत्त्वकी होगी।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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