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________________ आचार्य जिनसेन और उनका हरिवंश ४२९ पुन्नाट संघ काठियावाड़में यो तो मुनिजन दूर दूर तक सर्वत्र ही विहार करते रहते हैं परन्तु पुन्नाट संघका सुदूर कर्नाटकसे चलकर काठियावाड़में पहुँचना और वहाँ लगभग दो सौ वर्षतक रहना एक असाधारण घटना है। इसका सम्बन्ध दक्षिणके चौलुक्य और राष्ट्रकूट राजाओंसे ही जान पड़ता है जिनका शासन काठियाबाड़ और गुजरातमें बहुत समय तक रहा है और जिन राजवंशोंकी जैनधर्मपर विशेष कृपा रही है। अनेक चालुक्य और राष्ट्रकूट राजाओं तथा उनके माण्डलिकोंने जैनमुनियोंको दान दिये हैं और उनका आदर किया है। उनके बहुतसे, अमात्य, मंत्री, सेनापति आदि तो जैनधर्मके उपासक तक रहे हैं । ऐसी दशामें यह स्वाभाविक है कि पुन्नाटसंघके कुछ मुनि उन लोगोंकी प्रार्थना या आग्रहसे सुदूर काठियावाड़में भी पहुँच गये हों और वहीं स्थायी रूपसे रहने लगे हो । हरिषेणके बाद और कब तक काठियाबाड़में पुन्नाट संघ रहा, इसका अभी तक कोई पता नहीं चला है। जिनसेनने अपने ग्रन्थकी रचनाका समय शक संवत्में दिया है और हरिषेणने शक संवत्के सिवाय विक्रम संवत् भी साथ ही दे दिया है । पाठक जानते हैं कि उत्तरभारत, गुजरात, मालवा आदिमें विक्रम संवत्का और दक्षिणमें शक संवत्का चलन रहा है । जिनसेनको दक्षिणसे आये हुए एक दो पीढ़ियाँ ही बीती थीं इसलिए उन्होंने अपने ग्रन्थमें पूर्व संस्कारवश श० सं० का ही उपयोग किया, परन्तु हरिपेणको काठियाबाड़में कई पीढ़ियाँ बीत गई थीं, इसलिए उन्होंने वहाँकी पद्धतिके अनुसार साथमें वि० सं० देना भी उचित समझा। नन्नराज-वसति वर्द्धमानपुरकी नन्नराज-वसतिमें अर्थात् नन्नराजके बनवाये हुए या उसके नामसे उसके किसी वंशधरके बनवाये हुए जैनमन्दिरमें हरिवंशपुराण लिखा गया थां । यह नन्नराज नाम भी कर्नाटकवालोंके सम्बन्धका आभास देता है और ये राष्ट्रकूट वंशके ही कोई राजपुरुष जान पड़ते हैं । इस नामको धारण करनेवाले १ देखो छयासठवें सर्गका ५२ वाँ पद्य ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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