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________________ ४२२ जैनसाहित्य और इतिहास नाम प्रायः देशों और स्थानोंके ही नामसे पड़े हैं । श्रवणबेल्गोलके १९४ नं० के शिलालेखमें जो श० सं० ६२२ के लगभगका है एक 'कित्तुर' नामके संघका उल्लेख है । कित्तूर या कीर्तिपुर पुन्नाटकी पुरानी राजधानी थी जो इस समय मैसूरके होग्गडेवकोटे' ताल्लुकेमें है। सो यह कित्तूर संघ या तो पुन्नाट संघका ही नामान्तर होगा और या उसकी एक शाखा। ग्रन्थकर्ताके समय तककी अविच्छिन्न गुरुपरम्परा हरिवंशके छयासठवें सर्गमें महावीर भगवानसे लेकर लोहाचार्य तककी वही आचार्य-परम्परा दी है, जो श्रुतावतार आदि अन्य ग्रन्थों में मिलती है- अर्थात् ६२ वर्षमें तीन केवली ( गौतम, सुधर्मा, जम्बू ), १०० वर्षमें पाँच श्रुतकेवली (विष्णु, नन्दिमित्र, अपराजित, गोवर्द्धन, भद्रबाहु), १८३ वर्षमें ग्यारह दशपूर्वके पाठी (विशाख, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जय, नाग, सिद्धार्थ, धृतिसेन, विजय, बुद्धिल्ल, गंगदेव, धर्मसेन ), २२० वर्षमें पाँच ग्यारह अंगधारी ( नक्षत्र, जय. पाल, पाण्डु, ध्रुवसेन, कंस ), और फिर ११८ वर्षमें सुभद्र, जयभद्र, यशोबाहु और लोहार्य ये चार आचाराङ्गधारी हुए, अर्थात् वीरनिर्वाणसे ६८३ वर्ष बाद तक ये सब आचार्य हो चुके । उनके बाद नीचे लिखी परम्परा चली_ विनयंधर, श्रुतिगुप्त, ऋपिगुप्त, शिवगुप्त (जिन्होंने कि अपने गुणोंसे अर्हद्वलिपद प्राप्त किया) मन्दराय, मित्रवीर, बलदेव, बलमित्र, सिंहबल, वीरवित, पद्मसेन, व्याघ्रहस्ति, नागहस्ति, जितदण्ड, नन्दिषेण, दीपसेन, धरसेन, धर्मसेन सिंहसेन, नन्दिषण, ईश्वरसेन, नन्दिषण, अभयसेन, सिद्धसेन, अभयसेन, भीमसेन, जिनसेन, शान्तिषेण, जयसेन, अमितसेन, ( पुन्नाटगणके अगुआ और सौ वर्ष तक जीनेवाले ), इनके बड़े गुरु भाई कीर्तिषेण और फिर उनके शिष्य जिनसेन ( ग्रन्थकर्ता )। इनमेंसे प्रारम्भके चार तो वहीं मालूम होते हैं जिन्हें इन्द्रनन्दिने अपने श्रुतावतारमें अंगपूर्वके एक देशको धारण करनेवाले आरातीय मुनि कहा है और जिनके नाम विनयधर, श्रीधर शिवदत्त और अर्हद्दत हैं। विनयंधर और विनयधरमें तो कोई फर्क ही नहीं है । शिवदत्त और शिवगुप्त भी एक हो सकते हैं । 'गुप्त'का प्राकृतरूप 'गुप्त' भ्रमवश दत्त हो सकता है । बीचके दो नाम शंकास्पद हैं । 'महातपोभूविनयंधरः श्रुतामृषिश्रुतिं गुप्तपदादिकां दधत्' इस चरणका ठीक
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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