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________________ लोकविभाग और तिलोयपण्णत्ति ६२ वर्ष में ३ केवलज्ञानी, ५ श्रुतकेवली, १०० ११ १८३ ११ ग्यारह अंग और दशपूर्वधारी, २२०,” ५ ग्यारह अंगके धारी, ११८ ४ आचारांग के धारी, "" "" ६८३ छः सौ तिरासी वर्ष । बीस सहस्सं ति सदा सत्तारसवच्छराणि सुदतित्थं । धम्मपयट्टणहेदू विच्छिस्सदि कालदोसेण ॥ ८३ ॥ तेत्तियमेत्ते काले जं मिस्सदि चाउरण्णसंघादो । अविणीदुम्मेधाविय असूयको तह य पाएण || ८४ ॥ सत्तभयअट्ठमदेहिं संजुत्ता सल्लगारववरेएहिं । कलहपिओ रागट्ठो कुरो कोहादुओ लोहो ॥ ८५ ॥ १७ अर्थ – ( पंचमकाल २१००० वर्षका है । इसमें ६८३ वर्ष तक श्रुतज्ञान रहा, अतएव शेषके ) २०३१७ वर्ष तक धर्मप्रवृत्तिका हेतुभूत श्रुततीर्थ कालदोषसे विच्छिन्न रहेगा | इतने समय तक चातुर्वर्ण संघ में प्रायः अविनीत, दुर्बुद्धि, ईर्षा, सात भय और आठ मदों तथा शल्यादिसे युक्त कलहप्रिय, रागी, क्रूर, क्रोधी और लोभी मुनि उत्पन्न होंगे ।। ८३ - ८५ ॥ राजकाल-गणना वीरजिणे सिद्धिगंदे चउसद- इगिसट्ठि वासपरिमाणो । कालम्मि अदिक्कते उप्पण्णो एत्थ सगराओ ॥ ८६ ॥ अहवा वीरे सिद्धे सहस्सणवकम्मि सगसयब्भहिये । पणसीदिम्मि अतीदे पणमासे सगणिओ जादो ॥ ८७ ॥ ( पाठान्तरं ) चोद्दस-सहस्स-सगसय तेणउदी वासकालविच्छेदे । वीरेसरसिद्धी दो उप्पणो सगणिओ अहवा ॥ ८८ ॥ ( पाठान्तरं ) णिव्वाणे वीरजिणे छव्वाससदेसु पंचवरिसेसु । पणमासु गदेसुं संजादो सगणिओ अहवा ॥ ८९ ॥ २
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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