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________________ ३२४ जैनसाहित्य और इतिहास पर चढ़ाई करनी पड़ी होगी और उसे जीता होगा । इस अनुमानकी पुष्टि श्रवणबेल्गोलके मारसिंहके शिलालेखसे' होती है जिसमें लिखा है कि उसने कृष्ण तृतीयके लिए उत्तरीय प्रान्त जीते और बदलेमें उसे 'गुर्जर-राज' का खिताब मिला। इसी तरह होलकेरीके ई० स० ९६५ और ९६८ के शिलालेखोंमें मारसिंहके दो सेनापतियोंको ' उजयिनी भुजंग' पदको धारण करनेवाला बतलाया है । ये गुर्जर-राज और उज्जयिनी-भुजंग पद स्पष्ट ही कृष्णद्वारा सीयकके गुजरात और मालवके जीते जानेका संकेत करते हैं। सीयक उस समय तो दब गया, परन्तु ज्यों ही पराक्रमी कृष्णकी मृत्यु हुई कि उसने पूरी तैयारीके साथ मान्यखेटपर धावा बोल दिया और खोट्टिगदेवको परास्त करके मान्यखेटको बुरी तरह लूटा और बरबाद किया । पाइय-लच्छी नाममालाके कर्ता धनपालके कथनानुसार यह लूट वि०सं० १०२९ ( श० सं० ८९४ ) में हुई और शायद इसी लड़ाई में खोट्टिगदेव मारा गया । क्योंकि इसी साल उत्कीर्ण किया हुआ खरडाका शिलालेख खोट्टिगदेवके उत्तराधिकारी कर्क (द्वितीय ) का है। __कृष्ण तृतीय ई० स० ९३९ (श० सं० ८६१ ) के दिसम्बरके आसपास गद्दीपर बैठे होंगे । क्यों कि इस वर्षके दिसम्बरमें इनके पिता बद्दिग जीवित थे और कोल्लगलुका शिलालेख फाल्गुन सुदी ६ शक स० ८८९ का है जिसमें लिखा है कि कृष्णकी मृत्यु हो गई और खोटिंगदेव गद्दीपर बैठा । इससे उनका २८ वर्ष तक राज्य करना सिद्ध होता है, परन्तु किलूर (द० अर्काट ) के वीरत्तनेश्वर मन्दिरका शिलालेखें उनके राज्यके ३० वें वर्षका लिखा हुआ है । विद्वानोंका खयाल है कि ये राजकुमारावस्थामें, अपने पिताके जीते जी ही राज्यका कार्य सँभालने लगे थे, इसीसे शायद उस समयके दो वर्ष उक्त तीस वर्षके राज्य कालमें जोड़ लिये गये हैं । राष्ट्रकूटों और कृष्ण तृतीयका यह परिचय कुछ विस्तृत इस लिए देना पड़ा जिससे पुष्पदन्तके ग्रंथों में जिन जिन बातोंका जिक्र है, वे ठीक तौरसे समझमें आ १ ए० इं० जि० ५, पृ० १७९ । २ ए० इं० जि० ११, नं० २३-३३ । ३ ए० ई० जि० १२, पृ० २६३ । ४ मद्रास ए० क. १९१३ नं० २३६ । ५ मद्रास एपिग्राफिक कलेक्शन सन् १९०२, नं० २३२ ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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