SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 306
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७८ जैनसाहित्य और इतिहास सीरध्वज पुत्र-लाभके लिए यज्ञ-भूमि जोत रहे थे, उसी समय लाङ्गलके अग्रभागसे सीता नामक दुहिता उत्पन्न हुई । बौद्धोंके जातक ग्रन्थ बहुत प्राचीन हैं जिनमें बुद्धदेवके पूर्व-जन्मकी कथायें लिखी गई हैं । दशरथ जातकके अनुसार काशीनरेश दशरथकी सोलह हजार रानियाँ थीं। उनमेंसे मुख्य रानीसे राम लक्ष्मण ये दो पुत्र और सीता नामकी एक कन्या हुई । फिर मुख्य रानीके मरनेपर दूसरी जो पट्टरानी हुई उससे भरत नामका पुत्र हुआ। यह रानी बड़े पुत्रोंका हक मारकर अपने पुत्रको राज्य देना चाहती थी। तब इस भयसे कि कहीं यह बड़े पुत्रोंको मार न डाले, राजाने उन्हें बारह वर्षतक अरण्यवास करनेकी आज्ञा दे दी और वे अपनी बहिनके साथ हिमालय चले गये और वहाँ एक आश्रम बनाकर रहने लगे। नौ वर्षके बाद दशरथकी मृत्यु हो गई और तब मंत्रियोंके कहनेसे भरतादि उन्हें लेने गये, परन्तु वे अवधिके भीतर किसी तरह लौटनेको राजी नहीं हुए, इस लिए भरत रामकी पादुकाओंको ही सिंहासनपर रखकर उनकी ओरसे राज्य चलाने लगे । आखिर बारह वर्ष पूरे होनेपर वे लौटे, उनका राज्याभिषेक हुआ और फिर सीताके साथ ब्याह करके उन्होंने १६ हजार वर्ष तक राज्य किया ! पूर्वजन्ममें शुद्धोदन राजा दशरथ, उनकी रानी महामाया रामकी माता, राहुल-माता सीता, बुद्धदेव रामचन्द्र, उनके प्रधान शिष्य आनन्द भरत, और सारिपुत्र लक्ष्मण थे। __इस कथामें सबसे अधिक खटकनेवाली बात रामका अपनी बहिन सीताके साथ ब्याह करना है । परन्तु इतिहास बतलाता है कि उस कालमें शाक्योंके राजघरानोंमें राजवंशकी शुद्धता सुरक्षित रखनेके लिए भाईके साथ भी बहिनका विवाह कर दिया जाता था। यह एक रिवाज था। इस तरह हम हिन्दू और बौद्ध साहित्यमें राम-कथाके तीन रूप देखते हैं, एक वाल्मीकि रामायणका, दूसरा अद्भुत रामायणका और तीसरा बौद्ध जातकका । जैन रामायणके दो रूप इसी तरह जैन-साहित्यमें भी राम-कथाके दो रूप मिलते हैं, एक तो पउमचरिय और पद्मचरितका और दूसरा गुणभद्राचार्यके उत्तरपुराणका । पद्मचरित या पउमचरियकी कथा तो प्रायः सभी जानते हैं, क्योंकि जैनरामायणके रूपमें उसीकी सबसे अधिक प्रसिद्धि है, परन्तु उत्तरपुराणकी कथाका उतना प्रचार नहीं है जो उसके ६८ वें पर्वमें वर्णित है । उसका बहुत संक्षिप्त सार यह है
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy