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________________ जैन साहित्य और इतिहास आचार्यावलिकागतं विरचितं तत्सिंहसूरर्षिणा, भाषायाः परिवर्तनेन निपुणैः सम्मानिता (तं) साधुभिः॥१ वैश्वे स्थिते रविसुते वृषभे च जीवे, राजोत्तरेषु सितपक्षमुपेत्य चन्द्रे । ग्रामे च पाटलि(क)नामनि पाण(ण्ड्य)राष्ट्र, शास्त्रं पुरा लिखितवान् मुनिसर्वनन्दिः ॥२॥ संवत्सरे तु द्वाविंशे कांचीशसिंहवर्मणः । अशीत्यग्रे शकाब्दानां सिद्धमेतच्छतत्रये ॥ ३॥ पञ्चादशशतानि षड्विंशत्यधिकानि वै। शास्त्रस्य संग्रहस्त्विदं छन्दसानुष्टभेन च ॥४॥ इति लोकविभागे मोक्षविभागो नाम एकादशप्रकरणं समाप्तं । अर्थात् देवों और मनुष्योंकी सभामें भगवान् वर्द्धमान् अरहंतने भव्य जनोंके लिए जो जगत्का सारा स्वरूप कहा था और जिसे सुधर्म स्वामी आदि गणधरोंने जाना था, वह आचार्योंकी परम्पराद्वारा चला आया, और उसे सिंहसूरिने भाषाका परिवर्तन करके रचा । निपुण साधुओंने इसका सम्मान किया ॥ १॥ जिस समय उत्तराषाढ़ नक्षत्रमें शनिश्चर, वृषभ (?)में बृहस्पति और उत्तराफाल्गुनीमें चन्द्रमा था, तथा शुक्लपक्ष था ( अर्थात् फाल्गुन शुक्ला पूर्णिमा थी) उस समय पाणेराष्ट्रके पार्टलिक ग्राममें इस शास्त्रको पहले सर्वनन्दि नामक मुनिने लिखा ॥२॥ कांचीके राजा सिंहवर्माके २२ वें संवत्सरमें और शकके ३८० वें वर्षमें यह ग्रन्थ समाप्त हुआ ॥ ३ ॥ यह शास्त्रका संग्रह १५२६ अनुष्टुप् छन्दोंमें समाप्त हुआ है। १ · वृषभे ' पाठ अशुद्ध दिखता है। वृष राशिमें उस समथ बृहस्पतिकी स्थिति ठीक नहीं बैठती। २-३ पं० के० भुजबलि शास्त्रीने बतलाया है कि यह 'पाण' नहीं किन्तु पाण्डव राष्ट्र है जिसकी राजधानी उस समय कांची थी और पाटलिक ग्राम वर्तमान कड्डलोर ( Cuddalore) है । तामिल भाषाके ' पेरियपुराण' आदि ग्रंथोंमें इसे · त्रिप्पदिरिपुलियूर' कहा गया है। ४ सिंहवर्मा · पल्लव ' वंशके राजा थे और उनकी राजधानी 'कांची' थी।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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