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________________ २१६ जैन साहित्य और इतिहास था | उसमें उन्नीसवीं गाथाका अनुवाद इस प्रकार हैCC समवसरन श्रीपास जिनंद, रेसन्दीगिरि नैनानंद । ” सो कहीं इस रेसिन्दीगिरिके विशेषण 'नैनानन्द' के कारण ही तो नैनागिर रेसन्दीगिरि नहीं बना दिया गया है । पहले लिखा जा चुका है कि निर्वाण-भक्तिकी टीकामें 'ऋष्यद्रि' का अर्थ ' श्रमणणिरि ' किया है और श्रमणगिरि पञ्च पर्वतों में से एक है, तब फिर यह ऋद्रि और कौन-सा है ? इसका उत्तर चाहे जो हो, परन्तु नैनागिर तो वह नहीं है, यह प्रायः निश्चित है । इस लेखमें पाठकोंने देखा होगा कि निर्वाणकाण्ड में जिन स्थानोंसे जिन जिन मुनियोंका मोक्ष जाना लिखा है, दूसरे ग्रन्थों में कहीं-कहीं वह नहीं लिखा या विरुद्ध लिखा है । इस विषय में यह सूचित कर देना आवश्यक प्रतीत होता है कि बहुत पहले से ही ग्रन्थकर्त्ता आचार्यों में कथा-सम्बन्धी मत-भेद रहा है । उदाहरण के तौरपर पद्मपुराणका रामचरित और उत्तरपुराणका रामचरित उपस्थित किया जा सकता है | हरिवंशके नेमिचरित और उत्तरपुराण के नेमिचरित में भी अन्तर है । ऐसी दशा में निर्वाण-काण्डके विषय में यही कहा जा सकता है कि उसके कर्त्ता उक्त दो परम्पराओंमें से किसी एक के माननेवाले होंगे और यह भी संभव है कि उक्त दोके सिवाय और भी कोई परम्परा रही हो जिसका अनुसरण उन्होंने किया हो । परिशिष्ट ( १ ) इस लेखको समाप्त कर चुकने के बाद बम्बईके ऐलक पन्नालाल सरस्वती-भवनमें हमें ' तीर्थाचेन चन्द्रिका' नामका ग्रन्थ प्राप्त हुआ । यह ' श्रीवादिमत्तमातंग - मर्दन- जिनवाणीविलासिनी- भुजंगम-नायक कविकुल- तिलक गुणभद्राचार्य 'का बनाया हुआ है और संस्कृत वृत्तोंमें है | इसमें तीन उच्छ्वास और १७३ पद्य हैं । पहले उच्छ्वासमें विपुलाचलपर उपस्थित होकर राजा श्रेणिकका तीर्थोंके सम्बन्ध में प्रश्न करनेका वर्णन है, दूसरेमें तीर्थोंका और तीसरे में तीर्थार्चा के माहात्म्यका | दूसरे उच्छ्वास में तीर्थंकरों के गर्भ जन्म, दीक्षा, तप और निर्वाण कल्याणके स्थानोंके नाम-निर्देश भर हैं और कोई बात ऐसी नहीं है जिससे वे स्थान कहाँ थे, इसका कोई पता लग सके ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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