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________________ हमारे तीर्थक्षेत्र १९१ मंदिर बनवाया था, इसीलिए उसे तारापुर कहते हैं । इसके बाद उसी बच्छराजने फिर सिद्धायिका देवीका मंदिर बनवाया जो कालवश दिगम्बरियोंने ले लिया । अब वहींपर मेरे (कुमारपालके ) आदेशसे अजितनाथका ऊँचा मंदिर यशोदेवके पुत्र दण्डाधिप अभयदेवने निर्माण किया । यह कहनेकी आवश्यकता नहीं कि तारंगामें जो विशाल श्वेताम्बर मंदिर कुमारपाल महाराजका बनवाया हुआ मौजूद है, यह उसीका उल्लेख है। तारापुरका तारउरसे तारंगा नाम कैसे बन गया, यह समझमें नहीं आता। सम्भव है यह तारागाँवसे अपभ्रष्ट हुआ हो । इस स्थानसे वरांगादिका मोक्ष जाना लिखा है । परन्तु वर्द्धमान भट्टारकके वरांग-चरितके अनुसार तो वरांग मुक्त नहीं हुए बल्कि सर्वार्थसिद्धिको गये हैं ! इसके सिवाय उक्त चरितमें उनके देह-त्यागके स्थानका नाम तारंगा या तारपुर नहीं लिखा है। उन्होंने आनर्तपुर नगर बसाया था, वहाँ विशाल जिनालय बनवाकर प्रतिष्ठा कराई थी और फिर वहीं वरदत्त गणधरके समीप दीक्षा ले कर तपस्या की थी। श्रीजटा-सिंहनन्दिके वराङ्गचरितके अनुसार भी वराङ्ग वहींपर तपस्या करके सर्वार्थसिद्धिको गये हैं । भागवत पुराणके अनुसार द्वारका आनर्त्त देशमें ही थी और उसकी राजधानी आनर्तपुरका वर्तमान तारंगासे कोई मेल नहीं बैठता । संस्कृत निर्वाण-भक्तिमें भी तारापुर या तारङ्गाका नाम नहीं है। यहाँ दो दिगम्बर मंदिर हैं जिनमेंसे एक संवत् १६११ का है और दूसरा १९२३ का । इसके पहलेका कोई चिह्न वहाँ नहीं रह गया है। पावागिरि रामसुआ विण्णि जणा लाडनरिंदाण अट्ठकोडीओ। पावाए गिरिसिहरे णिव्याण गया णमो तेसिं ॥ ५ ॥ अर्थात् पावाके गिरिशखरसे रामके दो पुत्र और लाट-नरेन्द्र आदि पाँच करोड़ मुनियोंको मोक्ष प्राप्त हुआ। इस समय बड़ोदासे २८ मीलकी दूरीपर चाँपानेरके पासका पावागढ़ ही पावागिरि माना और पूजा जाता है । यह पावागढ़ वास्तवमें एक बहुत विशाल पहाड़ी किला है जिसका प्राचीन
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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