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________________ जैनसाहित्य और इतिहास तीर्थोका नामोल्लेख संस्कृत निर्वाण-भक्तिमें भी नहीं है और निर्वाणभक्तिके सह्याद्रि, विंध्याद्रि, हिमवत् , वृषदीपक निर्वाण-काण्डमें दिखलाई नहीं देते। इससे अनुमान होता है कि ये दोनों भक्तियाँ पृथक् कालोंकी रचनायें हैं और सम्भव है कि इनके कर्ताओंके लिए एक दूसरेकी रचना अपरिचित रही हो । अब हम प्रत्येक तीर्थके विषयमें खोजकी दृष्टिसे प्रकाश डालनेकी चेष्टा करेंगे-केवल कैलास, गिरनार आदि सर्वमान्य तीर्थोको छोड़ देंगे। अतिशय क्षेत्रोंके सम्बन्धमें किसी दूसरे लेखमें विचार किया जायगा । तारउर बरदत्तो य वरंगो सायरदत्तो य तारवरणयरे । आहुट्टयकोडीओ णिव्वाण गया णमो तेसिं ॥३॥ निर्वाणकाण्डकी इस तीसरी गाथामें इस स्थानसे वरांग, सागरदत्त, वरदत्तादि साढ़े तीन करोड़ मुनियोंका निर्वाण लिखा है। मुद्रित पुस्तकोंमें 'तारवरणयरे' पाठ है परन्तु हमारी समझमें 'तारउरणियडे' (तारापुरनिकटे) होना चाहिए । 'तारउर' तारापुरका अपभ्रंश है । सोमप्रभाचार्यके 'कुमारपालप्रतिबोध' नामक ग्रन्थमें 'आर्यखपुटाचार्य-कथा' दी है। उक्त कथामें इसे तारीउर (तारापुर) ही लिखा है और कहा है कि बच्छराजने पहले पहाड़के निकट बौद्धोंकी तारादेवीका १ निर्वाण-काण्डकी कुछ प्रतियोंमें १९ वीं गाथाके बाद नीचे लिखी गाथा अधिक मिलती है जिसमें विंध्याचलका उल्लेख है विंध्याचलम्मि रणे मेहणादो इंदजयसहियो । मेघव(उ)रणाम तित्थे (?) णिव्वाण गया णमो तेसिं ॥ २ निर्वाणकाण्डकी गाथाओंके नम्बर सब प्रतियोंमें एकसे नहीं हैं, कहीं कहीं गडबड़ भी है । ३ गायकवाड ओरियंटल सीरीजमें प्रकाशित 'कुमारपाल-प्रतिबोध' पृष्ठ ४४३ । ४- ताराइ बुद्धदेवीइ मंदिरं तेण कारियं पुव्वं । आसन्नगिरम्मि तओ भन्नइ ताराउरं ति इमो ॥ तेणेव तत्थ पच्छा भवणं सिद्धाइयाइ कारवियं । तं पुणकालवसेणं दिगंबरेहिं परिग्गहियं ॥ तत्थ ममाएसेणं अजियजिणिंदस्स मंदिरं तुंगं । दंडाहिव अभएणं जसदेवसुएण निम्मवियं ॥
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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