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________________ जैनसाहित्य और इतिहास सबका क्रम-विकास तथा मूर्ति-शिल्प और स्थापत्य-कलाके वृद्धि-ह्रासकी जानकारीके लिए भी तीर्थ-क्षेत्र अत्यन्त उपयोगी हैं । जैन-समाजकी पिछली शताब्दियोंकी मनोवृत्ति और कला-प्रेमका उत्कर्षापकर्ष भी इन तीर्थोंके इतिहासमें छुपा हुआ है। तीर्थोके भेद इस समय दिगम्बर-सम्प्रदायमें तीर्थक्षेत्रोंके दो ही भेद किये जाते हैं । एक तो 'सिद्धक्षेत्र' जहाँसे तीर्थङ्कर या दूसरे महात्मा सिद्ध-पद या निर्वाणको प्राप्त हुए हैं और दूसरे ‘अतिशय क्षेत्र', जो किसी मूर्ति या तत्रस्थ देवताके किसी अतिशयके कारण बन गये हैं या जहाँ मन्दिरोंकी बहुलताके कारण दर्शनार्थी अधिक जाने लगे हैं और इस कारण उनका अतिशय बढ़ गया है। प्राकृत निर्वाण-भक्तिके दो खण्ड हैं, एक निर्वाण-काण्ड और दूसरा अतिशयक्षेत्रकाण्ड । इन दो खण्डोंके कारण ही शायद उक्त मान्यताका प्रचार हुआ है। निर्वाण-भक्ति ( संस्कृत ) के टीकाकार तीर्थङ्करोंकी निर्वाण-भूमि और अन्येषां (औरोंकी) निर्वाण-भूमि कहकर सिद्ध-क्षेत्रोंके भी एक प्रकारसे दो भेद करते हैं । तीर्थङ्करोंकी गर्भ-जन्म-तप-ज्ञान-भूमियाँ भी तीर्थक्षेत्रोंमें गिनी जाती हैं और गिनी जानी चाहिए; पर वे उक्त दो भेदोंमें अन्तर्भुक्त नहीं हो सकतीं। ___ जहाँतक हम जानते हैं- श्वेताम्बर-सम्प्रदायमें सिद्धक्षेत्र और अतिशयक्षेत्र भेद नहीं माने जाते । श्रीजिनप्रभसूरिके विविध-तीर्थकल्पमें तथा अन्य ग्रन्थोंमें इस तरहका भेद-विधान नहीं मिलता । लेखका उद्देश्य प्राचीन तीर्थस्थान वास्तवमें कहाँ थे या कहाँ होने चाहिए और अब वे किन स्थानोंमें माने जा रहे हैं, केवल इसी दृष्टि से यह लेख लिखा गया है । गत जून महीनेमें (सन् १९३९) मैंने अपना अवकाशका समय सुहृद्वर प्रो० हीरालालजी जैनके साथ श्रीगजपन्थ-क्षेत्रपर व्यतीत किया था और वहींसे माँगीतुङ्गी क्षेत्रकी भी यात्रा की थी। उसी समय इस लेखको लिखनेकी प्रेरणा हुई और उनके सहयोगस इसका कच्चा रूप वहीं तैयार किया गया। केवल इतिहास-दृष्टिसे ही यह लिखा गया है, श्रद्धालुओंकी श्रद्धा-भक्तिमें किसी प्रकारका अन्तराय डालनेके अभिप्रायसे नहीं । इस विषयमें छान-बीन करनेकी भी अभी काफी गंजाइश है। ऐसी बहत-सी
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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