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________________ हमारे तीर्थक्षेत्र इतिहास में तीर्थोका स्थान 1 प्रत्येक धर्म और सम्प्रदाय के इतिहास में उसके तीर्थ स्थानोंका एक विशेष स्थान रहता है | जैन-सम्प्रदाय के सैकड़ों तीर्थ स्थान हैं परन्तु जहाँ तक हम जानते हैं उनके विषय में इतिहासकी दृष्टि से अभीतक विचार ही नहीं किया गया है और यदि किया गया है तो बहुत ही कम । जैन धर्म के मुख्य सम्प्रदाय दिगम्बर और श्वेताम्बर हैं । इन दोनोंके ही तीर्थस्थान हैं। उनमें बहुत से ऐसे हैं जिन्हें दोनों ही एक ही स्थानमें मानते पूजते हैं और बहुत-से ऐसे भी हैं जिन्हें या तो दिगम्बरी ही मानते पूजते हैं या केवल श्वेताम्बरी; अथवा एक सम्प्रदाय एक स्थानमें मानता है और दूसरा दूसरे स्थान में । यह अभिन्नता और भिन्नता एक इतिहासज्ञके लिए दोनों सम्प्रदायोंकी अभिन्नता और भिन्नताके समयोंका निर्णय करनेमें बहुत सहायक हो सकती है । किसी प्रान्त या प्रदेशमें एक सम्प्रदाय के तीर्थ अधिक हैं और किसी में दूसरेके । इससे उन प्रान्तों में उन तीर्थोंकी स्थापना के समय की या उससे बाद की सम्प्रदायविशेषकी बहुलता या प्रबलताका अनुमान भी किया जा सकता है। प्राचीन तीर्थ कौन-कौन थे और पीछे कौन कौन कब कब स्थापित हुए और किस भावनाकी प्रबलताके कारण हुए, यह जानना भी इतिहासज्ञके लिए बहुत उपयोगी है | बहुत से तीर्थ-स्थान एक समय बहुत प्रसिद्ध थे परन्तु इस समय उनका पता भी नहीं है, कि वे कहाँ थे और क्या हुए । इसी तरह जहाँ कुछ भी न था या एकाध मन्दिर ही था वहाँ बहुतसे नये नये मन्दिर निर्माण हो गये हैं और पिछले सौदो-सौ बरसोंमें तो वे स्थान मन्दिरों और मूर्तियोंसे पाट दिये गये हैं । उनको प्राचीन तीर्थ के रूपमें प्रसिद्ध करने के भी प्रयत्न किये गये हैं । यह भी इतिहास की एक महत्त्व की सामग्री है । चरण-चिह्नोंकी पूजा, आयाग-पटोंकी पूजा, स्तूप-पूजा, मूर्ति - पूजा और इन
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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