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________________ पण्डितवर आशाधर १४१ देवद्वारा स्थापित शारदा-सदन नामक पाठशालामें उत्कीर्ण करके रक्खी गई थी और वहीं खेली गई थी। अर्जुनवर्मदेवके जो तीन दान-पत्र मिले हैं वे इन्हीं मदनोपाध्यायके रचे हुए हैं। उनके अंतमें लिखा है-" रचितमिदं राजगुरुणा मदनेन ।' मदन गौड़ ब्राह्मण थे। पण्डित आशाधरजीने इन्हें काव्य-शास्त्र पढ़ाया था । ९-पंडित जाजाक-इनकी प्रेरणासे पण्डितजीने प्रतिदिनके स्वाध्यायके लिए त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्रकी रचना की थी। इनके विषयमें और कुछ नहीं मालूम हुआ। १० हरदेव-ये खण्डेलवाल श्रावक थे और अल्हण-सुत पापा साहुके दो पुत्रोंमेंसे ( बहुदेव और पद्मसिंहमेंसे) बहुदेवके पुत्र थे । उदयदेव और स्तंभदेव इनके छोटे भाई थे । इन्हींकी विज्ञप्तिसे पंडितजीने अनगारधर्मामृतकी भव्यकुमुदचन्दिका टीका लिखी थी। ११ महीचन्द्र साहु--ये पौरपाट वंशके अर्थात् परवार जातिके समुद्धर श्रेष्ठीके लड़के थे । इनकी प्रेरणासे सागारधर्मामृतकी टीकाकी रचना हुई थी और इन्हींने उसकी पहली प्रति लिखी थी। १२ धनचन्द्र-इनका और कोई परिचय नहीं दिया है। सागार धर्मटीकाकी रचनाके लिए इन्होंने भी उपरोध किया था। १३ केल्हण—ये खण्डेलवालवंशके थे और इन्होंने जिन भगवानकी अनेक प्रतिष्ठायें कराके प्रतिष्ठा प्राप्त की थी। सूक्तियोंके अनुरागसे अर्थात् सुन्दर कवित्वपूर्ण रचना होनेके कारण इन्होंने 'जिनयज्ञ-कल्प 'का प्रचार किया था। यज्ञकल्पकी पहली प्रति भी इन्हींने लिखी थी। १४ धीनाक—ये भी खण्डेलवाल थे। इनके पिताका नाम महण और माताका कमलश्री था। इन्होंने त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्रकी सबसे पहली प्रति लिखी थी। कवि अहर्ददास-ये मुनिसुव्रतकाव्य, पुरुदेवचम्पू और भव्यजनकंठारभरणके कर्ता हैं । पंजिनदास शास्त्रीके खयालसे ये भी पंडित आशाधरके शिष्य थे। परन्तु इसके प्रमाणमें उन्होंने जो उक्त ग्रन्थोंके पद्य उद्धृत किये हैं, उनसे तो इतना ही मालूम * पौरपाट और परवार एक ही हैं , इसके लिए देखिए ‘परवार जातिके इतिहासपर प्रकाश ' शीर्षक लेख।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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