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________________ पण्डितवर आशाधर विशाल अध्ययन और प्रतिभा इस ग्रन्थके कर्त्ता पण्डित आशाधर एक बहुत बड़े विद्वान् हो गये हैं । शायद दिगम्बर सम्प्रदायमें उनके बाद उन जैसा बहुश्रुत, प्रतिभाशाली, प्रौढ़ ग्रन्थकता और जैनधर्मका उद्योतक दूसरा नहीं हुआ। न्याय, व्याकरण, काव्य, अलंकार, शब्दकोश, धर्मशास्त्र, योगशास्त्र, वैद्यक आदि विविध विषयोंपर उनका अधिकार था। इन सभी विषयोंपर उनकी अस्खलित लेखनी चली है और अनेक विद्वानोंने चिरकाल तक उनके निकट अध्ययन किया है। उनकी प्रतिभा और पाण्डित्य केवल जैन शास्त्रों तक ही सीमित नहीं था, इतर शास्त्रों में भी उनकी अबाध गति थी । इसीलिए उनकी रचनाओंमें यथास्थान सभी शास्त्रोंके प्रचुर उद्धरण दिखाई पड़ते हैं और इसी कारण अष्टांगहृदय, काव्यालंकार, अमरकोश जैसे ग्रंथोंपर टीका लिखनेके लिए वे प्रवृत्त हुए। यदि वे केवल जैनधर्मके ही विद्वान् होते तो मालवनरेश अर्जुनवर्माके गुरु बालसरस्वती महाकवि मदन उनके निकट काव्यशास्त्रका अध्ययन न करते और विन्ध्यवर्माके सन्धिविग्रह-मन्त्री कवीश बिल्हण उनकी मुक्तकण्ठसे प्रशंसा न करते । इतना बड़ा सम्मान केवल साम्प्रदायिक विद्वानोंको नहीं मिला करता । वे केवल अपने अनुयायियोंमें ही चमकते हैं, दूसरों तक उनके ज्ञानका प्रकाश नही पहुँच पाता। उनका जैनधर्मका अध्ययन भी बहुत विशाल था। उनके ग्रन्थोसे पता चलता है कि अपने समयके तमाम उपलब्ध जैन-साहित्यका उन्होंने अवगाहन किया था । विविध आचार्यों और विद्वानोंके मत-भेदोंका सामंजस्य स्थापित करनेके लिए उन्होंने जो प्रयत्न किया है वह अपूर्व है। वे 'आर्ष संदधीत न तु विघटयेत' के माननेवाले थे, इसलिए उन्होंने अपना कोई स्वतंत्र मत तो कहीं प्रतिपादित नहीं किया है; परन्तु तमाम मत-भेदोंको उपस्थित करके उनकी विशद
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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