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________________ देवनन्दि और उनका जैनेन्द्र व्याकरण १०५ सर्वार्थसिद्धि अ० ७ सूत्र १६ की व्याख्यामें लिखा है, "शास्त्रेऽपि 'अश्ववृषयोमथुनेच्छायामि' त्येवमादिषु तदेव गृह्यते । ” यह पाणिनिके ७-१-५१ सूत्रपर कात्यायनका पहला वार्तिक है । वहाँ " अश्ववृषयोमैथुनेच्छायाम् ” इतने शब्द हैं और इन्हींको सर्वार्थसिद्धिकारने लिया है । यहाँ कात्यायनके वार्तिकको उन्होंने ' शास्त्र' शब्दसे व्यक्त किया है । सर्वार्थसिद्धि अ० ५ सूत्र ४ की व्याख्या में 'नित्य' शब्दको सिद्ध करने के लिए पूज्यपाद स्वामी लिखते हैं, “नेः ध्रुवे त्यः इति निष्पादितत्वात् ।” परन्तु जैनेन्द्रमें 'नित्य' शब्दको सिद्ध करनेवाला कोई सूत्र ही नहीं है, इस लिए अभयनन्दिने अपनी वृत्तिमें “ येस्तुट्” ( ३-२-८१ ) सूत्रकी व्याख्यामें " नेवः इति वक्तव्यम्” यह वार्तिक बनाया है और 'नियतं सर्वकालं भवं नित्यं ' इस तरह स्पष्ट किया है । जैनेन्द्र में 'त्य' प्रत्यय ही नहीं है, इसके बदले 'य' प्रत्यय है । इससे मालूम होता है कि सर्वार्थसिद्धिकारने पूर्वोक्त बात स्वनिर्मित व्याकरणको लक्ष्यमें रखकर नहीं कही है। अन्य व्याकरणोंके प्रमाण भी वे देते थे और यह प्रमाण भी उसी तरहका है। कुछ स्थानोंमें उन्होंने अपने निजके सूत्र भी दिये हैं। जैसे पाँचवें अध्यायके व्याख्यानमें लिखा है “ 'विशेषणं विशेष्येण' इति वृत्तिः ।" यह जैनेन्द्रका १-३-५२ वाँ सूत्र है। यह सूत्र शब्दार्णव-चन्द्रिका (१-३-४८) वाले पाठमें भी है। इन सब प्रमाणोंसे यह बात अच्छी तरह सिद्ध हो जाती है कि जैनेन्द्रका असली सूत्र-पाठ वही है जिसपर अभयनन्दिकृत वृत्ति है । शब्दार्णव-चन्द्रिकावाला पाठ असली सूत्र-पाठको संशोधित और परिवर्धित करके बनाया गया है और उसका यह संस्करण संभवतः गुणनन्दि आचार्यकृत है। अब प्रश्न यह है कि जब गुणनन्दिने मूल ग्रंथमें इतना परिवर्तन और संशोधन किया, तब उस परिवर्तित ग्रन्थका नाम जैनेन्द्र ही क्यों रक्खा ? इसके उत्तरमें निवेदन है कि एक तो शब्दार्णव-चन्द्रिका और जैनेन्द्र-प्रक्रियाके पूर्वोल्लिखित श्लोकोंसे गुणनन्दिके व्याकरणका नाम 'जैनेन्द्र' नहीं किन्तु 'शब्दार्णव' मालूम १ तत्त्वार्थराजवार्तिकमें भी है “ शास्त्रेऽपि अश्ववृषयोमथुनेच्छायामित्येवमादौ तदेव कर्माख्यायते ।"
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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