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________________ १०४ जैनसाहित्य और इतिहास निपातः प्राप्नोति नैष दोषः अभ्यर्हित्वात्प्रमाणस्य तत्पूर्वनिपातः।' और अभयनन्दिवाले पाठमें इस विषयका प्रतिपादन करनेवाला कोई सूत्र नहीं है। केवल अभयनन्दिका 'अभ्यर्हितं पूर्व निपतति' वार्तिक है। यदि अभयनन्दिवाला सूत्र-पाठ ठीक होता तो उसमें इस विषयका प्रतिपादक सूत्र अवश्य होता जो कि नहीं है । पर शब्दार्णववाले पाठमें ' अर्ये' ( १-३-११५) ऐसा सूत्र है जो इसी विषयको प्रतिपादित करता है। इसलिए यही सूत्र-पाठ देवनन्दिकृत है।" इसपर हमारा निवेदन यह है कि " अल्पाच्तरम्' (२-२-३४ । यह सूत्र पाणिनिका है और इसके ऊपर कात्यायनका “ अभ्यर्हितं च” वार्तिक तथा पतंजलिका “ अभ्यर्हितं पूर्व निपतति ” भाष्य है। इससे मालूम होता है कि पूज्यपादने अपनी सर्वार्थसिद्धि-टीकाके इस स्थलमें पाणिनि और पतंजलिके ही सूत्र तथा भाष्यको लक्ष्य करके उक्त विधान किया है। अब प्रश्न होगा कि जब सर्वार्थसिद्धिकार स्वयं एक व्याकरणके कर्ता हैं, तब उन्होंने पाणिनिका और उसके भाष्यका आश्रय क्यों लिया ? उत्तर यह है कि पूज्यपाद स्वामी सर्वार्थसिद्धिकी रचनाके समय अपना व्याकरण भले ही बना चुके हों, परन्तु उसने विशेष प्रसिद्ध लाभ नहीं की थी और इस कारण स्वयं उनके ही हृदयमें उसकी इतनी प्रमाणता नहीं थी कि वे अन्य प्रसिद्ध व्याकरणों, उनके वार्तिकों और भाष्योंको सर्वथा भुला दें या उनका आश्रय न लें। यह निश्चय है कि उन्होंने अपनी सर्वार्थसिद्धि में अन्य वैयाकरणोंके भी मत दिये हैं और अनेक बार पतंजलिके महाभाष्यके वाक्य । सर्वार्थसिद्धि अ० ४ सूत्र २२ की व्याख्यामें लिखा है-" यथाहुः-द्वतीयां क्रिया ही कह रही है कि ग्रन्थकर्ता यहाँ किसी अन्य पुरुषका वचन दे रहे हैं । अब पतंजलिका महाभाष्य देखिए । उसमें १-२-१ के ५ वें वार्तिकके भाष्यमें बिलकुल यही वाक्य दिया हुआ है—एक अक्षरका भी हेरफेर नहीं है । इससे स्पष्ट है कि सर्वार्थसिद्धिके कर्त्ताने अन्य व्याकरण-ग्रन्थोंके भी प्रमाण दिये हैं। १ तत्त्वार्थराजवार्तिकमें इसी प्रमाणनयैरधिगम: ' सूत्रकी व्याख्यामें पतंजलिका यह भाष्य ज्योंका त्यों अक्षरशः दिया है । अभयनन्दिका भी यही वार्तिक है । परन्तु तब तक अभयनन्दिका अस्तित्व ही न था । २ राजवार्तिक और श्लोकवार्तिकमें भी यह वाक्य उद्धृत किया गया है ।
SR No.010293
Book TitleJain Sahitya aur Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1942
Total Pages650
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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