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________________ ८० जैन रत्नाकरें का अर्थ है एक योग । अर्थात दो करण एक योग से भांगे हो सकते हैं जैसे (क) (१) करूं नहीं कराऊं नहीं मन से । (२) करूं नहीं कराऊं नहीं वचन से । (३) करूं नहीं, कराऊं नहीं काया से । (ख) (४) करूं नहीं, अनुमोदूं नहीं मन से । (५) करूं नहीं, अनुमोदूं नहीं वचन से । (६) करूं नहीं, अनुमोदूं नहीं काया से । (ग) (७) कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं मन से । (८) कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं वचन से । (६. कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं काया से । आंक २२ का भांगा है- यहाँ - पहले अङ्क दो का अर्थ है दो करण और दूसरे अङ्क २ का अर्थ है दो योग । अर्थात् दो करण एवं दो योग से ६ भांगे हो सकते हैं जैसे - (क) 1१) करूं नहीं, कराऊ' नहीं मन से, वचन से । (२) करूं नहीं, कराऊ' नहीं मन से, काया से । (३) करूं नहीं, कराऊ' नहीं वचनसे, काया से । (ख) (४) करूं नहीं, अनुमोदूं नहीं मन से वचन से ।
SR No.010292
Book TitleJain Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKeshrichand J Sethia
PublisherKeshrichand J Sethia
Publication Year
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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