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________________ (DHA जैन रत्नाकर M नहीं, सेवावे नहीं एवं सेवने वाले को भला जाणे नहीं, मन से वचन से काया से। (५) पांचवें महाव्रत में साधु सर्वथा प्रकारे परिग्रह रखे नहीं, रखावे नहीं एवं रखने वाले को भला जाणे नहीं, मन से वचन से काया से। (२४) चौबीसवें बोले भांगा ४६तीन करण तीन योग से - तीन करण-करू नहीं, कराऊं नहीं अनुमोदूं नहीं। • तीन योग-मन, वचन, काय । आंक ११ का मांगा: यहां पहले १ का अर्थ है एक करण और दूसरे १ का अर्थ है एक योग । अर्थात् एक करण और एक योग से भागे हो सकते हैं जैसे-. (क) (१) करूं नहीं मन से। (२) करूं नहीं वचन से। (३) करूं नहीं काया से। (ख) (४) कराऊं नहीं मन से। (५) कराऊ नहीं वचन से। (६) कराऊं नहीं काया से। (ग) (७) अनुमोदूं नहीं मन से । (८) अनुमोदूं नहीं वचन से। (९) अनुमोदूं नहीं काया से।
SR No.010292
Book TitleJain Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKeshrichand J Sethia
PublisherKeshrichand J Sethia
Publication Year
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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