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________________ 'जैन रत्नाकर - (१८) अठारहवें बोले दृष्टि तीन : (१) सम्यक् दृष्टि (२) मिथ्या दृष्टि (३) सम्यक मिथ्या दृष्टि । (१६) उन्नीसवें बोले ध्यान चार : (१) आर्त ध्यान (२) रौद्र ध्यान (३) धर्म ध्यान (४) शुक्ल ध्यान। (२०) बीसवें बोले षट् द्रव्यों का ज्ञान :(१) धर्मास्तिकाय द्रव्य से- एक द्रव्य क्षेत्र से - लोक प्रमाण काल से - आदि अन्त रहित अर्थात् अनादि और अनन्त । भाव से - अरूपी गुण से - गतिशील पदार्थों को गति में अपेक्षित सहायता करना। (२) अधर्मास्तिकाय द्रव्य से- एक द्रव्य । क्षेत्र से -- लोक प्रमाण। काल से - अनादि और अनन्त । भाव से - अरूपी। गुण से - पदार्थों के स्थिर रहने में अपेक्षित सहायता करना।
SR No.010292
Book TitleJain Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKeshrichand J Sethia
PublisherKeshrichand J Sethia
Publication Year
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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