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________________ जैन रत्नाकर पञ्च महाव्रत संचरण, समिति पञ्च प्रकार । प्रबल पञ्च इन्द्रिय विजय, धार निर्जरा सार ॥ (१०) लोक भावना चौदह राजु उतंग नभ, लोक पुरुष संठान । तामें जीव अनादि तें, भरमत है बिन ज्ञान ॥ (११) बोधिदुर्लभ भावना धन जन कंचन राजसुख, सबहिं सुलभ कर जान। दुर्लभ है संसार में, एक यथारथ ज्ञान ॥ (१२) धर्म भावना जाचे सुरतरु देय सुख, चिंतित चिन्ता रैन । बिन जाचे बिन चिन्तये, धर्म सकल सुख दैन। पञ्च पद वन्दना अरिहन्त वन्दना __पहिले पदे श्री सीमंधर स्वामी आदिदेई जघन्य बीस तीर्थङ्कर देवाधिदेवजी उत्कृष्ट एक सौ साठ तीर्थङ्कर देवाघिदेवजी, पंच महाविदेह क्षेत्र में विचरे छ,-अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त चारित्र, अनन्त बल, अशोक
SR No.010292
Book TitleJain Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKeshrichand J Sethia
PublisherKeshrichand J Sethia
Publication Year
Total Pages137
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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